डीयू ने बीए इंग्लिश ऑनर्स के कोर्स में बदलाव का किया बचाव
दिल्ली विश्वविद्यालय में नई शिक्षा नीति के तहत पाठ्यक्रम से महाश्वेता देवी और दो दलित लेखिकाओं की कृतियों को हटाने का अंग्रेजी के शिक्षक विरोध कर रहे हैं। विश्वविद्यालय ने इस बदलाव का बचाव किया है। डीयू के रजिस्ट्रार विकास गुप्ता का कहना है कि विश्वविद्यालय ने पांचवे सेमेस्टर के लिए बीए (ऑनर्स) अंग्रेजी पाठ्यक्रम के लिए निगरानी समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। उन्होंने बताया कि पाठ्यक्रम की सामग्री के संबंध में मीडिया के एक वर्ग द्वारा उजागर किए गए कुछ मुद्दे गलत और निराधार हैं, क्योंकि पाठ्यक्रम को सभी संबंधित हितधारकों की भागीदारी और उचित मंचों पर आवश्यक विचार-विमर्श के साथ एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से पारित किया गया है।
विकास गुप्ता ने बताया कि पाठ्यक्रम की सामग्री अंग्रेजी विभाग द्वारा तैयार की गई है। विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद द्वारा गठित अधिकार प्राप्त निरीक्षण समिति ने अंग्रेजी विभाग के प्रमुख के साथ विचार-विमर्श और सिफारिशों के बाद पांचवें सेमेस्टर का पाठ्यक्रम तैयार किया था और यह डीयू की वेबसाइट www.du.ac.in पर पहले से ही उपलब्ध है।वर्तमान पाठ्यक्रम का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने पर स्पष्ट रूप से विषयवस्तु की विविधता के संदर्भ में पाठ्यक्रम की समावेशी प्रकृति का पता चलता है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्याति के विभिन्न प्रसिद्ध विद्वानों के अग्रणी कार्यों को उनके धर्म, जाति और पंथ पर विचार किए बिना शामिल किया जाता है।
विश्वविद्यालय के अनुसार, अकादमिक क्षेत्र में उत्कृष्टता इन विशेषताओं के अधीन नहीं है। विश्वविद्यालय इस विचारों का समर्थन करता है कि अध्ययन के भाषा पाठ्यक्रम में पाठ का हिस्सा बनने वाली साहित्यिक सामग्री ऐसी होनी चाहिए जो किसी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस न पहुंचाए और हमारे समाज की एक सच्ची तस्वीर को चित्रित करने के लिए प्रकृति में समावेशी हो।
डीयू का पत्र ओवरसाइट कमेटी का बचाव
हालांकि डीयू के शिक्षकों ने इसका विरोध किया है और कहा कि कई कारणों से डीयू की प्रेस विज्ञप्ति दुर्भावनापूर्ण है। डीयू के किरोड़ीमल कॉलेज में अंग्रेजी के प्राध्यापक डॉ. रुद्राशीष चक्रबर्ती का कहना है कि डीयू का पत्र 15 विद्वत परिषद के सदस्यों की चिंताओं को दूर करने के बजाय ओवरसाइट कमेटी का बचाव करता है। डीयू का बयान विरोधाभासों का एक पुलिंदा है। यदि यह लोकतांत्रिक और समावेशी होने का दावा करती है तो यह विभाग को पाठ्यक्रम से पाठ को हटाने का निर्देश नहीं दे सकती है, जिसे अंग्रेजी शिक्षकों के जीबीएम द्वारा अनुमोदित विभागीय समितियों के माध्यम से तैयार किया गया है।
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