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शनिवार, 30 अक्टूबर 2021

OBC Reservation: क्रीमीलेयर की सीमा 10 लाख करने की तैयारी, UP सहित पांच राज्यों के चुनाव से पहले हो सकता है एलान


 

OBC Reservation: क्रीमीलेयर की सीमा 10 लाख करने की तैयारी, UP सहित पांच राज्यों के चुनाव से पहले हो सकता है एलान

मेडिकल दाखिले से जुड़ी आल इंडिया कोटे की सीटों में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को आरक्षण देने के बाद केंद्र सरकार इस समुदाय को एक और बड़ा तोहफा दे सकती है। ओबीसी क्रीमीलेयर की आय सीमा को बढ़ाया जा सकता है। फिलहाल जो प्रस्ताव है, उसमें इसे आठ लाख रुपये से बढ़ाकर 10 लाख रुपये तक सालाना करने की सिफारिश की गई है।हालांकि, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग इसके दायरे को 12 लाख रुपये से ज्यादा करने का सुझाव दे चुका है। आयोग का कहना है कि इससे ओबीसी आरक्षण का लाभ और ज्यादा लोगों को मिलेगा। ओबीसी वर्ग से इसकी मांग भी लंबे समय से की जा रही है। इस बीच सरकार का जो रुख है और आने वाले दिनों में जिस तरह से उत्तर प्रदेश, पंजाब सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उसे देखते हुए माना जा रहा है कि यह एलान भी जल्द ही हो जाएगा।

क्रीमीलेयर की आय सीमा के दायरे का निर्धारण अंतिम बार 2017 में हुआ था। इसमें इसे सालाना छह लाख रुपये से बढ़ाकर आठ लाख रुपये किया गया था। इससे पहले इसके दायरे में बढ़ोतरी वर्ष 2013 में की गई थी। इसे देखते हुए वर्ष 2021 में इसकी सीमा में बढ़ोतरी होनी है। मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों की मानें तो बढ़ोतरी का प्रस्ताव तो है, लेकिन यह कब और कितना होगा, इसे लेकर अभी कुछ तय नहीं हुआ है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के अनुसार, ओबीसी क्रीमीलेयर की सीमा बढ़ाने की मांग और तय नियमों के तहत प्रत्येक तीन साल में इसकी समीक्षा करने की प्रतिबद्धता को देखते हुए इसकी तैयारी शुरू कर दी गई है।

विशेषज्ञों से भी राय ली जा रही है। इसके साथ ही मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति के सुझाव पर भी मंथन किया जा रहा है। इसमें आय के दायरे में वेतन को भी शामिल करने की सिफारिश की गई है। हालांकि ओबीसी कमीशन सहित ओबीसी वर्ग से जुड़े लोग इसका विरोध कर रहे है। वहीं सरकार से जुड़े लोगों की मानें तो इससे ओबीसी आरक्षण का लाभ उन लोगों को ही मिलेगा, जिन्हें वाकई में इसकी जरूरत है। मौजूदा समय में ओबीसी की क्रीमीलेयर के निर्धारण में वेतन और कृषि से होने वाली आय को शामिल नहीं किया गया है। इसका निर्धारण सिर्फ अन्य स्त्रोत से होने वाली आय के आधार पर होता है।


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