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गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

कोरोना बढ़े तो बढ़े चुनाव होंगे: आयोग ही नहीं सभी पार्टियां भी तैयार, समझिए कैसे कराया जाएगा चुनाव



कोरोना बढ़े तो बढ़े चुनाव होंगे: आयोग ही नहीं सभी पार्टियां भी तैयार, समझिए कैसे कराया जाएगा चुनाव

कोरोना के ओमिक्रॉन वैरिएंट की वजह से मामले बढ़ने के बीच चुनाव आयोग से यूपी के सियासी दलों ने समय पर चुनाव कराने की मांग की है और आयोग चुनाव कराने के लिए तैयार है। आयोग चुनाव पर सियासी दलों की राय जानने के लिए तीन दिन के यूपी दौरे पर था और गुरुवार को मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने प्रेस कांफ्रेंस करके यह बताया कि सभी दलों ने कहा कि कोरोना प्रोटोकॉल को फॉलो करते हुए चुनाव कराए जाएं। उनके मुताबिक सभी दल समय पर चुनाव चाहते हैं। लेकिन कुछ दल ज्यादा रैलियों के खिलाफ हैं और रैलियों की संख्या कम करने को कहा है। उन्होंने बताया कि राजनीतिक दलों ने घनी बस्तियों में पोलिंग बूथ बनाने का भी सुझाव दिया है।

ध्यान देने वाली बात है कि इसी साल अप्रैल-मई में पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के बाद कोरोना की दूसरी जबरदस्त लहर आई थी। हालांकि इस बात के प्रमाण नहीं है कि कोरोना की दूसरी लहर को लाने में विधानसभा चुनावों के प्रचार और रैलियों ने संक्रमण बढ़ाने में कितनी बड़ी भूमिका अदा की, लेकिन चूंकि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में भीड़ को दुश्मन नंबर वन माना जाता है, इसलिए यह भी माना गया कि चुनाव के बाद संक्रमण बढ़ा।  विशेषज्ञों का कहना है कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भीड़ संक्रमण बढ़ाने का स्रोत हो सकती है और सोशल डिस्टेंसिंग वायरस के प्रसार को रोकने के प्रमुख तरीकों में से एक है। 

भीड़ संक्रमण के प्रसार के लिए अनुकूल क्यों है

जब चुनाव होंगे तो रैलियां भी होंगी, चुनाव प्रचार होगा, रोड शो किए जाएंगे, जिससे संक्रमण बढ़ सकता है।  कोरोना संक्रमण को बढाने में भीड़ वायरस के संक्रमण के लिए हॉट स्पॉट माना जाता है। अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के अनुसार, वायरस मुख्य रूप से उन लोगों के बीच फैलता है जो एक-दूसरे के निकट संपर्क में रहते हैं। विशेष रूप से एक संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने या बात करने पर मुंह से निकलने वाली सांसों के बूंदों के माध्यम से आसानी से एक स्वस्थ व्यक्ति संक्रमित हो सकता है।

संक्रमित व्यक्ति के सांसों की बूंदें उन लोगों के मुंह या नाक में जा सकती हैं जो आस-पास हैं। कुछ सबूत हैं कि कोरना वायरस हवा में रहने वाला वायरस भी हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पिछले साल जुलाई की शुरुआत में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि बंद  सार्वजनिक स्थानों में हवाई प्रसारण की संभावना ज्यादा है।   कुछ भीड़-भाड़ वाली घटनाएं, जैसे कि 2020 में अमेरिका केमिनियापोलिस और न्यूयॉर्क शहर में ब्लैक लाइव्स मैटर को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन में वायरस के प्रसार की ज्यादा भूमिका नहीं मानी गई लेकिन पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के लिए ओक्लाहोमा के तुलसा में हुई एक इनडोर राजनीतिक रैली को कोरोना संक्रमण बढ़ने की वजह माना गया।  

आयोग के पास चुनाव कराने के विकल्प क्या? 

चूंकि यूपी के सभी सियासी दल समय पर चुनाव चाहतें हैं तो ऐसे में चुनाव कराने के लिए आयोग के पास क्या विकल्प है यह जानने के लिए हमने कई पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों और चुनाव आयोग के पूर्व अधिकारियों से बात की। हालांकि किसी ने भी अपना नाम नहीं छापने की शर्त रखी।

दक्षिण कोरिया का उदाहरण देख सकता है

एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त का कहना है कि जिस तरह से फिर मामले बढ़ रहे हैं, कहा नहीं जा सकता कि इसका अंत कहां है। ऐसे में विभिन्न देशों के उदाहरण देखकर पांच राज्यों में चुनाव कराए जा सकते हैं। जिसके लिए सबसे बेहतरीन और सफल उदाहरण है दक्षिण कोरिया का। दक्षिण कोरिया ने अप्रैल 2020 में कोरोना महामारी के दौरान ही चुनाव कराने के लिए एक उचित योजना तैयार की और महामारी के दौरान ही सफलतापूर्वक चुनाव कराए। 

दक्षिण कोरिया ने क्या योजना बनाई थी

दक्षिण कोरिया ने मतदान केंद्रों को कीटाणुरहित करके, मतदाताओं के बीच शारीरिक दूरी बनाकर , दस्ताने और मास्क पहनने और हाथ को साफ करने के अनिवार्य नियम बनाकर चुनाव संपन्न कराए। मतदान बूथों पर पहुंचने पर मतदाताओं ने अपना तापमान चेक किया। जिनका तापमान 99.5 डिग्री फ़ारेनहाइट से ऊपर था, उन्हें सुनसान इलाकों के बूथों पर भेजा गया।

वर्चुअल रैली की इजाजत दे सकता है

एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त के मुताबिक कोरोना के बढ़ते मामलों और संक्रमण बेकाबू हो जाने की आशंका के कारण चुनाव आयोग चाहे तो रैलियों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। इसकी जगह आभासी अभियानों जैसे प्रचार के वैकल्पिक साधनों का इस्तेमाल किया जा सकता था। इससे संक्रमण रोकने में बड़ी मदद मिल सकती है।हालांकि आयोग के एक पूर्व रिटायर्ड अधिकारी बताते हैं कि वर्चुअल रैली की इजाजत देने में एक समस्या यह है कि छोटी पार्टियां और निर्दलीय प्रत्याशी इसमें असमर्थता जताते हैं। पिछले साल जब भाजपा ने बिहार चुनाव से कई हफ्ते पहले एक बड़ी वर्चुअल रैली की, तो बहुत सी पार्टियों ने इस पर विरोध जताया और कहा कि कई दलों के पास वर्चुअल रैली करने के लिए संसाधन नहीं हैं।

हालांकि वे कहते हैं कि यदि पार्टियां और उम्मीदवार चाहें तो वे वर्चुअल रैली करने के इंतजाम कर सकते हैं। इससे रैलियों में शारीरिक तौर पर रहना न तो नेताओं के लिए जरूरी है और ना ही जनता के लिए। इससे शुरुआती तौर पर भीड़ जुटने से संक्रमण होने की जो आशंका है उसे टाला जा सकता है। बाद में मतदान के समय सोशल डिस्टेसिंग का पालन कराया जा सकता है। लेकिन इसके लिए चुनाव आयोग को यह दिशा-निर्देश बनाने पड़ेंगे कि वर्चुअल रैलियों पर किए गए खर्च का हिसाब कैसे रखा जाएगा?

कोरोना प्रोटोकॉल का पालन के लिए पार्टियों पर बढ़ेगा दबाव

मुख्य चुनाव आयुक्त ने लखनऊ में बताया कि राजनीतिक दलों को कोरोना प्रोटोकॉल के बारे में समझा गया है। इसका मतलब है कि यूपी चुनाव में भी राजनीतिक दलों को कोरोना प्रोटोकॉल को फॉलो करना पड़ेगा जिस तरह पश्चिम बंगाल में करना पड़ा था। चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में कोरोना प्रोटोकॉल फॉलो करने की जिम्मेदारी राजनीतिक पार्टी और उम्मीदवार पर डाल दी थी और साफ चेतावनी दी थी कि अगर ऐसा नहीं होता है तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी। रैलियों में सभी लोग मास्क लगाएं, ये जिम्मेदारी आयोजकों की होगी। नेता और स्टार प्रचारकों को हर हाल में कोविड प्रोटोकॉल को फॉलो करना होगा। चुनाव आयोग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि हो सकता है पांच राज्यों के चुनाव में भी आयोग राजनीतिक दलों पर कोरोना प्रोटोकॉल को फॉलो करने पर सख्ती कर सकता है। 

चुनाव प्रचार के दिन घटाए जा सकते हैं

बताया जा रहा है कि कोरोना काल में चुनाव कराने का एक तरीका यह भी हो सकता है कि आयोग प्रचार के दिन कम रखे। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत चुनाव प्रचार के लिए पार्टी या उम्मीदवार को कम से कम 14 दिन का समय देना चाहिए। आयोग चाहे तो चुनाव प्रचार की अवधि को कम किया जा सकता है। 

 बूथों की संख्या बढ़ेगी 

मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने बताया कि कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए यूपी में राजनीतिक दलों ने घनी आबादी में मतदाता बूथ बनाने नहीं बनाने का सुझाव दिया है। उन्होंने बताया कि बूथों की संख्या बढ़ाई जाएगी। कोरोना को देखते हुए 1500 लोगों पर एक बूथ को घटाकर 1250 लोगों पर एक बूथ कर दिया गया है। इससे 11 हजार बूथ बढ़े हैं। मतदान केंद्रों में आने-जाने के रास्ते अलग-अलग बनाए जाएंगे और यहां सोशल डिस्टेसिंग का पालन कराया जाएगा। मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह भी कहा कि यूपी चुनाव में मतदान का समय एक घंटा बढ़ाया जाएगा। 

कोरोना के पहले चरण के बाद बिहार में चुनाव में क्या हुआ था

एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त का कहना है कि चुनाव आयोग ने बिहार चुनाव के दौरान कोविड प्रोटोकॉल निर्धारित किया था और यह सुनिश्चित किया था कि उसका पालन कराने की पूरी व्यवस्था की थी। यही कारण है कि बिहार चुनाव के बाद वहां मामले नहीं बढ़े। पांच राज्यों में भी इस तरह कोरोना प्रोटोकॉल का पालन कराकर चुनाव कराया जा सकता है।

क्या पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद बढ़ा था कोरोना? 

इस साल पश्चिम बंगाल में 27 मार्च से 29 अप्रैल के बीच आठ चरणों में विधानसभा चुनाव हुए। इसे देश का सबसे लंबा विधानसभा चुनाव माना गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पश्चिम बंगाल में चुनाव के दौरान कोरोना संक्रमण में बहुत तेजी आई। जब फरवरी में वहां चुनाव की घोषणा हुई थी तब राज्य में रोज 200 मामले आ रहे थे, लेकिन चुनाव के आखरी चरण तक पहुंचने पर यह आंकड़ा करीब 17,500  पर पहुंच गया। दो मार्च तक पश्चिम बंगाल में कोरोना से एक भी मौत नहीं हुई थी लेकिन दो मई को जब मतगणना हो रही थी कोरोना संक्रमितों की मौतों की संख्या 100 पर पहुंच गई।

हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने एक अखबार को दिए एक इंटररव्यू में कहा कि बंगाल में 4,000 मामले ही हैं, इसलिए कोरोना संक्रमण को चुनावी रैलियों से नहीं जोड़ना चाहिए। एक महीने तक सभी पार्टियों और नेताओं ने धुआंधर रैलियां, जन सभाएं और रोड शो किए और इस दौरान संक्रमण बढ़ता रहा। हारकर नौ अप्रैल को चुनाव आयोग को यह चेतावनी देने के लिए मजबूर होना पड़ा कि कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए तय नियमों का पालन नहीं किया गया तो रैलियों पर रोक लगाई जा सकती है। तब तक रोज के केस 200 से बढ़कर 2,000  पर पहुंच गए। भाजपा को छोड़कर अन्य पार्टियों ने धीरे-धीरे अपनी रैलियों पर रोक लगा ली।17 अप्रैल को आयोग ने शाम सात बजे से सुबह दस बजे तक रैलियों पर रोक लगाई और मतदान से पहले के 'साइलेंस पीरियड' को 48 से 72 घंटे कर दिया। उससे पहले 16 अप्रैल को बंगाल में दो लाख से ज़्यादा नए मामले आ गए थे और एक दिन में हुई मौतों का आंकड़ा एक हजार को पार कर गया। 

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