आउटसोर्सिंग सेवा में वेतन व शर्तों में भेदभाव पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जताई नाराजगी
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आउटसोर्सिंग से श्रमिक सेवा मुहैया कराने के सभी शासनादेशों सहित पूरी योजना नीति दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने दो सप्ताह में सरकारी अधिकारियों का व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। पूछा है कि एक जैसा काम करने वाले श्रमिकों के विभिन्न जिलों में अलग-अलग पारिश्रमिक क्यों है? कोर्ट ने कहा है कि सरकार माडल सेवा नियोजक होने के नाते एक तरह के श्रमिकों की आउटसोर्सिंग सेवा लेने में पारिश्रमिक देने में विभेद नहीं कर सकती।
दो हफ्ते में पूरी स्कीम दाखिल करने का निर्देश
न्यायालय ने कहा कि जवाबी हलफनामे में स्पष्ट बताया जाए कि आउटसोर्सिंग सेवा के लिए सेवा प्रदाता द्वारा दिया जाने वाला न्यूनतम वेतन, नियोजन की माडर्न सेवा शर्तें अवकाश व छुट्टी की क्या नीति है। यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी व न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने संयुक्त स्वास्थ्य आउटसोर्सिंग, संविदा कर्मचारी संघ की तरफ से दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है।
याचिका पर सुनवाई 10 मार्च को होगी
न्यायालय ने कहा कि जवाबी हलफनामे में स्पष्ट बताया जाय कि आउटसोर्सिंग सेवा के लिए सेवा प्रदाता द्वारा दिया जाने वाला न्यूनतम वेतन, नियोजन की माडर्न सेवा शर्तें अवकाश व छुट्टी की क्या नीति है। यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी व न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने संयुक्त स्वास्थ्य आउटसोर्सिंग, संविदा कर्मचारी संघ की तरफ से दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। याचिका की सुनवाई 10 मार्च को होगी। इससे पहले सभी विपक्षियों से कोर्ट ने व्यक्तिगत हलफनामा मांगकर पूछा था कि समान काम पर दो जिलों में वेतन में अंतर क्यों है?आउटसोर्सिंग पर रखे वार्ड ब्वाय, आया का 7500 रुपये प्रतिमाह वेतन, हफ्ते में सात दिन ड्यूटी, कोई छुट्टी नहीं होती। जीबीएम पोर्टल पर आनलाइन आवेदन पर आउटसोर्सिंग से नियुक्ति में शोषण क्यों किया जा रहा है? कोर्ट ने आदेश पर सेवा प्रदाता कंपनी की तरफ से दाखिल जवाब में मांगी गई जानकारी नहीं दी गई। राज्य सरकार ने जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया। कोर्ट ने राज्य सरकार को दो हफ्ते का आखिरी मौका दिया है।
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