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सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

cryptocurrency कैसे काम करती है, क्या है ब्लॉकचेन और क्रिप्टोग्राफी, कैसे चलता है पूरा बाजार, आसान भाषा में समझें



 cryptocurrency कैसे काम करती है, क्या है ब्लॉकचेन और क्रिप्टोग्राफी, कैसे चलता है पूरा बाजार, आसान भाषा में समझें

वर्तमान दौर में हम किसी के पास कोई सामान खरीदने के लिए जाते हैं तो बदले में उसे पैसे देते हैं। उसी प्रकार जिसे पैसे देते हैं वो अपनी जरूरत के हिसाब से अन्य कोई समान खरीदने के लिए उसी पैसे का उपयोग करता है। अगर हम कहीं काम करते हैं तो हमें उसके बदले में बतौर परश्रमिक हमें पैसे में भुगतान किया जाता है। कुल मिलाकर कहा जाए तो बिना पैसे की दुनिया की वर्तमान दौर में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब दुनिया में पैसे-रुपये नाम की कोई चीज ही नहीं होती थी। 

पुराने दौर में लोग अपने-अपने तरीके से लेन-देन करते थे। अगर किसी को कोई भी समाना दूसरे आदमी से लेना होता था तो उसके बदले में उसे कोई चीज देनी होती थी। पुराने समय में लेनदेन करने के लिए जानवरों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता था क्योंकि उस समय सिर्फ जानवर ही एक व्यापार का तरीका होते थे। क्योंकि उस समय में जानवर सबसे ज्यादा होते थे और ना ही तो आज के समय के जैसी गाड़ियां होती थी और ना ही अन्य दूसरे साधन होते थे और उस समय में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए सिर्फ जानवरों का ही इस्तेमाल किया जाता था जैसे घोड़े ऊंट हाथी इन चीजों का इस्तेमाल होता था। इन चीजों से व्यापार किया जाता था। मान लीजिए किसी को घोड़े की जरूरत है तो वो उस आदमी को घोड़े वाले आदमी को अपनी बकरी या कोई दूसरा जानवर देना पड़ता। लेकिन इसमें एक पेंच ये आने लगा कि अगर किसी को घोड़े की जरूरत होती और घोड़े वाले आदमी को उसकी बकरी या दूसरे जानवर की आवश्यकता नहीं होती तो। ऐसे में ये परेशानी आती थी और लेनदेन मुश्किल होने लगी। मिस्र में किसी भी खरीदारी के लिए सोना और सिल्वर का इस्तेमाल चलन में आया।  

हर समय में सिल्वर और सोने को अपने साथ में रखना मुश्किल होता था और इससे लूटपाट का भी डर ज्यादा रहता था इसके बाद पहली बार 650 बी सी में Lydia में सिक्के की करेंसी को बनाया गया। इसके बाद गोल्ड स्मिथ बैंकिंग की इंग्लैंड में 16 शताब्दी में शुरुआत की गई क्योंकि सोना हमेशा साथ में रखना और उसके साथ खरीदरी बहुत मुश्किल होता था। इसलिए लोग अपना पैसा अपना सोना प्राइवेट बैंक मैं जमा करवाते थे। सिक्के को अपने पास हर समय में रखना बहुत मुश्किल था इसलिए 11 सताब्दी में चीन में सबसे पहले पेपर करेंसी बनाई गई और इस प्रकार चाइना को देखते हुए यूरोप में भी धीरे-धीरे 70 वीं शताब्दी में पेपर करेंसी का आविष्कार हुआ और फिर इस तरह से यह पूरी दुनिया में पेपर करेंसी फैल गई। 

इतनी लंबी भूमिका बनाने के पीछे का उद्देश्य था आपके ये बताना कि आज कल जो कीवर्ड सबसे ज्यादा चर्चा में है उस तर का सफर हमने कैसे तय किया और आखिर क्रिप्टोकरेंसी को क्यों विनिमय का सबसे सुविधाजनक क्षेत्र माना जा रहा है। क्रिप्टो एक ऐसा शब्द जो सुना तो सबने है लेकिन तकनीक की दुनिया का नया पैसा है क्या भला ये कम ही लोग जानते हैं। जिन्होंने इस खेल में पैसा बनाया उन्हें देखकर उन्हें देखकर क्रिप्टो की दुनिया में एक अंधी दौड़ शुरू हो गई। रोज नई डिजिटल करेंसी लॉन्च होती है और रोज क्रिप्टो की परिभाषा में एक नया पहलू जुड़ जाता है। जानकारी की अति अब जानकारी का आभाव बन गई है। अब इस खेल में भारत सरकार भी दाखिल हो रही है।  ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि क्या है ब्लॉकचेन, क्या है क्रिप्टोकरेंसी, कैसे ये काम करती है, माइनर क्या है, माइनिंग क्या है, पियर टू पियर नेटवर्क क्या है?

लेजर 

दो दोस्त हैं सुरेश और रमेश। सुरेश ने रमेश से 10 रुपये का काम करवाया और उसके 10 रुपये देने की बजाय उससे बोला कि मैं तुम्हें 10 रुपये के पेन दे देता हूं। अब सुरेश और रमेश ने सोचा कि हिसाब ठीक ठाक रहे और डिजिटल रहे। आजकल जमाना भी डिजिटल इंडिया का हो गया है। तो उन्होंने सोचा कि हम इसे एक डिजिटल पेन बना देते हैं। अब पेन का डिजिटल वर्जन तो बना लेंगे लेकिन एक समस्या ये रही कि इसे कोई भी कॉपी-पेस्ट कर सकता है। ईमेल में अटैच करके कई लोगों को भेज सकता है। इसका भी एक समाधान हो सकता है कि जैसे ही सुरेश ने रमेश को एक डिजिटल पेन दिया तो उसे एक कंप्यूटर में डॉक्यूमेंट में नोट कर लिया जाए कि सुरेश ने रमेश को एक पेन दिया है। इस हिसाब रखने वाले डॉक्यूमेंट को लेजर कहते हैं। अब ये जो लेजर है वो एक व्यक्ति मेंटेन कर रहा है तो वो कोई न कोई गड़बड़ कर सकता है, एक का दस भी लिख सकता है। हर कंप्यूटर में ये लेजर स्टोर हो रहा हो और हर कंप्यूटर में हिसाब हो की डिजिटल पेन कितनी है। सुरेश ने रमेश को एक पेन दी और रमेश के पास कितनी पेन है। ऐसे में अगर वो व्यक्ति एक जगह गड़बड़ करने की कोशिश करेगा तो सारे कंप्यूटर से मिसमैच करेगा तो पकड़ा जाएगा।  

पीयर टू पीयर नेटवर्क 

अब  बात करते हैं क्रिप्टोकरेंसी की, ये जो डिजिटल पेन का आदान-प्रदान किया ये एक तरह की क्रिप्टोकरेंसी थी। क्रिप्टो मतलब सिक्रेट, करेंसी मतलब मिडियम ऑफ परचेज यानी खरीदने का जो माध्यम है। एक सीक्रेट और प्राइवेट करेंसी। आपने कई  तरह की करेंसी के नाम सुने भी होंगे, जैसे की बिटक्वाइन, रिपल, डोगी कॉइन, इथेरियम। ये जो पब्लिक लेजर है जिसे कई सारे कंप्यूटर मेंटेन कर रहे हैं। इसे पीयर टू पीयर नेटवर्क कहते हैं। यानी पर्सन टू पर्सन नेटवर्क। कई सारे कंप्यूटर्स मिलकर उस लेजर को मेंटेन करते हैं। किसी एक का नहीं बल्कि अनेक का लेजर है। 

क्या है ब्लॉकचेन

इस लेजर को मेंटेन करने के लिए रिवॉल्यूशनरी टेक्नॉलाजी का प्रयोग होता है जिसे ब्लॉकचेन कहते हैं। जैसा की नाम से ही ज्ञात होता है कि ये दो शब्दों ब्लॉक और चेन से जुड़कर बना है। जैसे ट्रेन में कई डब्बे होते हैं। एक डब्बा भर गया और दूसरा डब्बा लगा दिया और फिर अगला डब्बा लगा दिया। इसी तरह ये ब्लॉकचेन भी काम करता है। एक ब्लॉक में ट्रांजक्शन भर गई तो अगला ब्लॉक उसके साथ जुड़ जाता है। उसमें ट्रांजक्शन भरने पर अगला ब्लॉक जुड़ जाता है। हर ब्लॉग में जो ट्रांजक्शन शुरु होती है वो पिछले ब्लॉक के ट्रांजक्शन के साथ जुड़ी होती है। मतलब सारी ट्रांजक्शन आपस में कनेक्टेड हैं। हर ब्लॉक चेन के फॉरमेट में एक दूसरे के साथ कनेक्टेड है। ये ब्लॉकचेन एक कंप्यूटर में नहीं बल्कि कई सारे कंप्यूटर्स में पूरी पार्दर्शिता के साथ उपलब्ध हैं। ऐसे में अगर कोई फ्रॉड करना चाहे तो तुरंत ट्रैक हो जाता है।  

ब्लॉकचेन ट्रांजक्शन 

सुरेश और रमेश दोनों के पास क्रिप्टोकरेंसी हैं। सुरेश के पास 2 बिटक्वाइन है, उसने एक बिटक्वाइन रमेश को दी। ऐसे में सारे कंप्यूटर्स काम पर लग जाते हैं और फटाफट चेक करने लग जाते हैं कि क्या सुरेश के पास सच में दो बिटक्वाइन हैं। उसकी सारी पुरानी ट्रांजक्शन के हिसाब से उसके पास दो बिटक्वाइन ही हैं। अब उसने रमेश को एक बिटक्वाइन दे दिया है तो उसके पास एक ही रह गया है। वहीं रमेश के पास कितने थे पूरा चेक करने के बाद एक जो सुरेश ने दिया वो इसमें जुड़ गया। ये सारी ट्रांजक्शन एक्यूरेसी के साथ कुछ सेकेंड के भीतर ही होती है। सारी ट्रांजक्शन पूरी हो जाती है, जिसे ब्लॉकचेन कहते हैं। 

माइनर और माइनिंग

जो भी लोग इस पब्लिक लेजर को मेंटेन कर रहे हैं उसे माइनर कहते हैं। इस ट्रांजक्शन को मेंटेन करने और वेलिडेट करने को माइनिंग कहते हैं। ये किसी को बैठकर नहीं करनी होती है। ये सिस्टम जेनरेटेज होता है, लेकिन इसके लिए स्पेशल कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर के साथ ही माइनिंग में जो वक्त व पैसा लग रहा है इसके बदले में माइनर्स को उसी करेंसी में कुछ रिवर्ड मिलता है।  

क्रिप्टोकरेंसी का एक मजबूत स्तंभ है क्रिप्टोग्राफी

इन सब के बीच सबसे अहम सवाल जो सभी के दिमाग में आएगा कि मेरा पास कितना पैसा है वो हर सिस्टम में मेंटेन हो रहा है, हर किसी को पता है कि कितना पैसा है तो कोई प्राइवेसी ही नहीं है। यहीं पर क्रिप्टोकरेंसी का एक मजबूत स्तंभ आता है जिसे क्रिप्टोग्राफी कहते हैं। आप सभी के फोन में व्हाट्सएप जरूर होंगे और इसके साथ ही आप एक शब्द इनक्रिप्शन से भी परिचित होंगे। इंटरनेट जगत में इनक्रिप्शन और डिक्रिप्शन शब्द बहुत ही प्रचलित शब्द है। 

इंटरनेट के डाटा को सुरक्षित करने के लिए इंक्रिप्शन का इस्तेमाल नहीं करने पर कोई भी आपका डाटा हैक कर सकता है। मान लीजिए कि दो लोग हैं जिन्होंने एक दूसरे को भेजा हो। जैसे ही आप मैसेज भेजते हैं एक प्रोग्राम आपके मैसेज को एक जटिल कोड में बदल देता है। जिसे मैसेज भेजा गया है उसके फोन में वो कोड जाता है दोबारा मैसेज में बदल जाता है और जिसने वो मैसेज पढ़ा उसे समझ में आ जाता है कि सामने वाले ने मैसेज क्या भेजा। इस दौरान कोई भी मैसेज कहीं भी स्टोर नहीं होता। ये एक तरह की सभी के लिए मैसेज (या डेटा) को अनुपयोगी बनाने की वह प्रक्रिया जिसमें सिर्फ प्राप्तकर्ता ही उसको समझ सके, इनक्रिप्शन कहलाती है।

इनक्रिप्टींग व डिक्रिप्टींग मैसेजस् के लिए उपयोगी प्रोसीजर्स बनाने की प्रक्रिया क्रिप्टोग्राफी कहलाती है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य सिर्फ इतना होता है कि मैसेज संदिग्ध यूज़र के द्वारा पर्याप्त समय में डिक्रिप्ट (पहचानना/पढ़ना) न हो पाए। क्रिप्टोग्राफी शब्द ग्रीक शब्द क्रिप्टो से बना है जिसका मतलब "हिडेन सीक्रेट" होता है । या दूसरे शब्दों में कहें तो यह एक कला है जिसमे हम अपने डाटा और इनफार्मेशन को सुरक्षित रख सकते हैं। क्रिप्टोग्राफी के जरिये हम अपने डाटा को सीक्रेट कोड में बदल सकते हैं जिन्हें सीफर टेक्सट कहा जाता है और इस डाटा को वही पढ़ सकता है जिसके पास इसको डिस्क्रिप्ट करने की सीक्रेट की होगी।  डिस्क्रिप्ट हुए डाटा को प्लेन टेक्सट कहा जाता है। 

डार्क साइड

2010 में एक बिट क्वाइन की कीमत सिर्फ 22 पैसे थे, लेकिन अब इसकी कीमत सुनेंगे तो दंग रह जाएंगे। वर्तमान में एक बिटकॉइन की कीमत भारतीय रूपयों में 34,00,000 लाख रूपयों से भी ज्‍यादा है। यानि आपको एक बिटकॉइन खरीदने के लिये लिये 34 लाख रूपये से अधिक धन खर्च करना होगा। क्रिप्टो करेंसी की कीमत इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि खबर क्या है, कंपनी क्या प्लान कर रही है। जैसे मार्च 2021 में एलेन मस्क ने कहा था कि टेस्ला बिटक्वाइन स्वीकार करना शुरु कर देगी। लोगों ने सोचा की बिटक्वाइन की डिमांड बढ़ने वाली है और लोगों ने इसे खरीदना शुरू कर दिया। बिटक्वाइन का रेट भी बढ़ने लगा। बिटक्वाइन एलेन मस्क के ऐलान से पहले 60 हजार डॉलर पर था वो 30 हजार डॉलर पर आ गया। इसके अलावा अभी भी ये बहुत सारी जगहों पर भुगतान के लिए स्वीकार्य नहीं है। 

अब सबसे बड़ा सवाल कि आखिर भारत में इस करेंसी का क्या भविष्य है। क्या सरकार इसे बैन कर देगी, या कानूनी मान्यता देगी? दुनिया के कई देशों में ये बैन है। साल 2022 में केंद्र सरकार के वित्‍त मंत्रालय ने क्रिप्‍टो करेंसी पर 30% टैक्‍स लगा दिया है। ने वाले समय में भारत सरकार इसे लीगल टेंडर का दर्जा तो नहीं देगी लेकिन इसे कमोडिटी के रूप में ट्रेडिंग किया जा सकता है।

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