बोर्ड परीक्षा के लिए अब चिंता नहीं चिंतन करने की जरूरत, परीक्षाओं को उत्सव की तरह मनाएं
उप्र बोर्ड परीक्षाओं की दस्तक शुरू हो चुकी है। दो साल से काेरोना के कारण पढ़ाई भी प्रभावित हुई। लेकिन, छात्रों ने इन चुनौतियों से लड़ना सीखा। आनलाइन, मोबाइल और दूरसंचार ऐसा माध्यम था जो छात्र-छात्राओं की पढ़ाई के लिए विकल्प बना। लेकिन, पढ़ाई प्रभावित हुई, इसकी चिंता करने का समय अब नहीं है। मानसिक तनाव से दूर रहकर अब तक जितना पढ़ा, उसकी अच्छी तरह तैयारी करें। साथ ही स्वस्थ और घर के माहौल को भी पढ़ाई के योग्य बनाए और परीक्षाओं को उत्सव की तरह मनाएं। उप्र बोर्ड की परीक्षाएं 24 मार्च से शुरू हो रही हैं, वहीं 26 अप्रैल से सीबीएसई की परीक्षाएं होंगी। जिससे यह समय परीक्षाओं पर पूरी तरह केंद्रित करने का है।
परीक्षा में अच्छे अंक लाने के टिप्स
- नए विषयों को परीक्षा के दौरान पढ़ने की बजाए अब तक पढ़े गए टापिक का अभ्यास करें।
- सकारात्मक सोच व व्यवहार बनाए रखें।
- परीक्षा परिणाम के विषय में ज्यादा न सोचें। यह आपके प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है।
- आहार में फल, हरी सब्जियां, पानी की मात्रा का ध्यान रखें।
- पढ़ाई के समय 45 मिनट के बाद पांच से दस मिनट का विराम लें।
- सोशल मीडिया का प्रयोग कम से कम करें।
- परीक्षा के दिन एक दूसरे से तैयारी की चर्चा की बजाय स्वयं की तैयारी पर आत्मविश्वास बनाए रखें।
- उत्तर लिखते समय साफ लिखें व समय का ध्यान रखें। -कई किताबों की बजाय एक किताब को कई बार पढ़ा जाए।
- समय प्रबंधन का ध्यान रखें और दिनचर्या को नियमित रखें।
क्या कहते हैं विशेषज्ञः मनोवैज्ञानिक सलाहकार रीना तोमर ने बताया कि वर्ष भर किए गए अध्ययन को मूल्यांकन के तौर पर लें। अभिभावक अपने बच्चों को सकारात्मक सोच व प्रदर्शन को बेहतर करने के लिए प्रेरित करें व उनका मनोबल बनाए। बाहर का खाना न खाएं। अभिभावकों को परीक्षा के दिनों में अपने बच्चों की दूसरे से तुलना न करें। घर का माहौल पढ़ाई के योग्य बनाएं। चाइल्ड स्पेशलिस्ट डा. शलभ अग्रवाल का कहना है कि बदलते मौसम में उल्टी दस्त और वायरल की शिकायत बढ़ सकती है। जिससे साधारण खाना ही लें। बाहर का खाना खाने से बचें। पोषक तत्व से भरपूर भोजन लें। रात को हलका भोजन के साथ सलाद जरूर लें। नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन समय से करें। मनोविशेषज्ञ मीनू मेहरोत्रा ने बताया कि अगर बच्चा उदास है तो उसकी समस्या को समझने की कोशिश करें। कई बार अभिभावक बच्चे की वास्तविक समस्या नहीं समझ पाते और बच्चा मानसिक तनाव से ग्रस्त रहने लगता है। इसलिए अभिभावकों को संवाद कायम रखना चाहिए। जो भी परिणाम आएगा, वह उन्हें स्वीकार्य है। किसी दूसरे बच्चे से तुलना न करें।
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