अग्निपथ योजना के जरिये सेना में नेपाली गोरखों की भर्ती को लेकर संशय बरकरार
नई दिल्ली। अग्निपथ योजना के जरिये सेना में नेपाली गोरखों की भर्ती को लेकर संशय बरकरार है। हालांकि, भारत की तरफ से नेपाल को अवगत कराया जा चुका है कि नई योजना में पूर्व की भांति गोरखों की भर्ती जारी रहेगी, लेकिन नेपाल की तरफ से इसे 1947 में हुए एक त्रिपक्षीय समझौते का उल्लंघन बताया जा रहा है। इसके चलते नेपाल गोरखों की भर्ती की अनुमति नहीं दे रहा है।
बहरहाल, अब निगाहें नेपाल के विदेश सचिव भरत राज पौडयाल की 13-14 सितंबर को होने वाली भारत यात्रा पर लगी हैं। समझा जाता है कि इस दौरान भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा उनकी शंकाओं का समाधान करेंगे। आजादी के वक्त भारत-नेपाल और ब्रिटेन के बीच हुए समझौते के तहत दोनों देशों की सेनाओं में गोरखा नौजवानों की भर्ती पर सहमति प्रकट की गई थी। तब से सात गोरखा रेजिमेंट में लगातार नेपाली गोरखा भर्ती होते रहे हैं। लेकिन अग्निपथ योजना में हुए बदलावों को लेकर नेपाल खुश नहीं है। उसने इसमें पेंशन और सेवाकाल से जुड़े मुद्दे उठाए हैं। खबर है कि सरकार को समर्थन दे रही कम्युनिस्ट पार्टिंयां सरकार पर समझौते से बाहर निकलने का दबाव डाल रही हैं।
वहीं, सेना प्रमुख मनोज पांडे ने भी नेपाल का दौरा किया है। हालांकि, उनका दौरा नेपाल सेना के निमंत्रण पर था लेकिन समझा जाता है कि इस मुद्दे पर भी चर्चा हुई होगी। आधिकारिक तौर पर इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। इस बारे में पूछने पर सेना की तरफ से कहा गया कि अभी नेपाल में गोरखों की भर्ती को लेकर कोई नई तारीख तय नहीं हुई है। पहले दो तिथियां तय हुई थीं, लेकिन नेपाल से अनुमति नहीं मिलने के कारण वह रद्द कर दी गई थीं।
30 हजार गोरखा तैनात
अग्निपथ योजना में चार साल के लिए अग्निवीरों की भर्ती का प्रावधान है, वहीं रेजिमेंट के अनुसार भी भर्ती प्रक्रिया नहीं होगी। भारतीय सेना में इस समय 30 हजार नेपाली गोरखा जवान कार्यरत हैं। नेपाल में 1.25 लाख पूर्व सैनिक हैं जिन्हें रक्षा मंत्रालय से पेंशन मिलती है। ब्रिटेन सेना भी गोरखों को बेहतरीन सिपाही मानती है।
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