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शुक्रवार, 2 सितंबर 2022

NCERT Class 6 Polity : Chapter-8 & Chapter-9

 

NCERT Class 6 Polity : Chapter-8 & Chapter-9

NCERT Class 6 Polity Chapter 8 & Chapter 9 in Hindi | UPSC Short Notes in Hindi | Class 6 Polity Short Notes in Hindi | भारतीय कृषि | किसान के प्रकार | सीढ़ीनुमा खेती | ग्रामीण आजीविका | शहरी आजीविका.

भारत के गाँवों में अधिकतर लोगों का पेशा कृषि है. गाँव के लोग खेती बाड़ी के आलावा कुछ अन्य काम भी करते है. हमारे देश के ग्रामीण परिवारों में 40% खेतिहर मजदुर है.

भारत में किसानों को तीन प्रकारों में बाँटा गया है – बड़ा किसान, छोटा किसान एवं भूमिहीन किसान.

बड़ा किसान :

बड़ा किसान की श्रेणी में कुछ मुट्ठी भर किसान ही आते है. गाँव की अधिकांश जमीन इन्हीं के पास होती है.

बड़े किसान के खेतों में इतनी उपज होती है की उनके परिवार की सारी जरूरतें पूरी हो जाती है तथा शेष बाजार में भी बिक जाता है.

कई बड़े किसान खेती से संबंधित व्यवसाय भी करते है, जैसे – आटा मिल, खाद और बीज की दुकान आदि. वे अपने कृषि उपकरण, जैसे – ट्रेक्टर, थ्रेशर, को किराये पर भी लगाते है.

बड़े किसानों को अपने खेतों में काम नहीं करना पड़ता है, बल्कि वे मजदूरों को काम पर लगाते है.

छोटा किसान :

किसानों की एक बड़ी संख्या इस श्रेणी में आती है. इस श्रेणी के किसान के खेतों में इतना उपज होता है की उनके परिवार का भरण-पोषण हो सके.

अधिकतर छोटे किसान, खुद ही अपने खेतों पर काम करते है और कुछ किसान, मजदूरों को भी काम पर लगाते है.

कुछ छोटे किसान ऐसे होते है जो दूसरों के खेतों पर भी काम कर लेते है ताकि कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाए.

भूमिहीन किसान :

अधिकतर गाँवों में भूमिहीन किसानों की संख्या बहुत अधिक होती है. ऐसे किसान अक्सर दूसरों की जमीन पर काम करते है, और इन्हें बहुत कम मजदूरी मिलती है. ऐसे किसानों के परिवार के हर सदस्य मेहनत मजदूरी में लगे रहते है.

भूमिहीन किसानों की कमाई इतनी कम होती है की उनके परिवार का ठीक से भरण-पोषण नहीं हो पाता है.

भारत में खेती से साल के कुछ ही महीनों में रोजगार उत्पन्न होता है. मजदुर साल के कुछ ही महीनों में व्यस्त रहते है, जैसे – जुताई, बुआई, निराई और कटाई के समय.

मंदी के महीनों में कई भूमिहीन किसान काम की तलाश में पास के शहरों में चले जाते है तो कई बड़े शहरों में पलायन कर जाते है.

सरकार की रोजगार सृजन योजनाओं के कारण कई मजदुरों को पास के गाँवों में सड़कें और बांध निर्माण में भी काम मिल जाता है.

सीढ़ीनुमा खेती :

सीढ़ीनुमा खेती का मतलब, पहाड़ी की ढलाऊ जमीन को छोटे-छोटे सपाट टुकड़ों में बाँट दिया जाता है और उस जमीन को सीढियों के रूप में बदल दिया जाता है. इसमें प्रत्येक सपाट टुकड़े के किनारे को ऊपर उठा दिया जाता है, जिससे पानी ठहरा रह सकें. इसमें चावल की खेती सबसे अच्छी तरह से होती है.

पशुपालन :

कुछ किसान अतिरिक्त आय के लिए पशुपालन भी करते है. ऐसे किसान दूध को अक्सर सहकारी समितियों को बेच देते है. कुछ किसान पास के शहरों में दूध बेचने चले जाते है तो कुछ किसान मुर्गी पालन भी करते है.

खेतों की पैदावार के लिए बाजार :

कटाई के महीनों में फसल की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है. ऐसे में किसानों को अपनी फसल बहुत कम दामों में बेचनी पड़ती है. कई बार बिचौलिये भी उन्हें फसल कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर करते है तो कई बार इसमें साहूकारों का भी हाथ होता है.

सरकार किसानों की मदद करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करती है. कटाई के महीनों में फ़ूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया ( FCI ) द्वारा किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल खरीदी जाती है.

गाँवो में अन्य पेशें :

गाँवों में कई अन्य पेशें के लोग भी देखने को मिलते है, जैसे बड़े गाँव में जेनरल स्टोर, दवा की दुकान, चाय-पान की दुकान आदि. कुछ लोग साइकिल मरम्मत, बढ़ईगिरी, गुड़ बनाना, आदि कामों को करते है.

मछली पकड़ना :

खासकर तटीय इलाकों के गाँवों में, मछली पकड़ना लोगों की मुख्य व्यवसाय है. अधिकतर मछुआरे के पास छोटी नाव और कुछ मामूली उपकरण होते है.

कुछ मछुआरे के पास बड़ी कैटामेरन होती है, जिसमें मोटर भी लगा रहता है. बड़ी कैटामेरन से वे गहरे समुद्र में भी मछली पकड़ सकते है.

ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज की स्थिति :

किसानों को कई बार खाद, बीज और कृषि उपकरण खरीदने के लिए कर्ज लेना पड़ता है.

बड़े किसानों को आसानी से बैंक से ऋण मिल जाता है लेकिन छोटे किसानों को इसमें मुश्किल होती है.

छोटे किसानों को जमींदारों और साहूकारों से ऋण लेना पड़ता है.

ऐसे में ब्याज दर बहुत ऊँची होती है, जिससे अक्सर छोटे किसान कर्ज तले दब जाते है.

छोटे किसानों की आय का अधिकतर हिस्सा कर्ज को चुकाने में चला जाता है.

अगर किसी प्राकृतिक विपदा के कारण फसल चौपट हो जाती है तो स्थिति और भी भयावह हो जाती है.

Class 6 NCERT Polity : Chapter-9

भारत में 5 हजार से ज्यादा शहर है और 27 महानगर है. चेन्नई, मुंबई, दिल्ली, कोलकाता जैसे प्रत्येक महानगर में 10 लाख से भी अधिक लोग रहते है और काम करते है. कहा जाता है की शहर में जिंदगी कभी रूकती नहीं है.

शहर :

जिस स्थान पर लोगों का मुख्य पेशा खेतीबारी नहीं होता है, उसे शहर कहते है और शहर को कृषि उत्पादों के लिए गाँवों पर निर्भर रहना पड़ता है.

शहर के बहुत ही कम लोग एक-दुसरे को जानते है लेकिन हर व्यक्ति के काम के कारण दूसरों का जीवन सरल बना रहता है.

सरकारी नौकरी :

शहर में कुछ लोग सरकारी नौकरी करते है. जिसमें से कुछ केंद्र सरकार के लिए तो कुछ राज्य सरकार के लिए काम करते है.

सरकारी नौकरी के लाभ :

सरकारी नौकरी स्थाई होती है. सरकारी कर्मचारी इस बात के लिए निश्चित रहता है की वह रिटायरमेंट होने तक नौकरी करता रहेगा.

सरकारी नौकरी में वेतन नियमित रूप से मिलता है. इसमें वेतन के अलावा और भी कई सुविधाएँ मिलती है.

सरकारी नौकरी में त्योहारों और राष्ट्रीय छुटियों पर छुट्टी मिलती है. इन छुट्टियों के अलावा, सरकारी कर्मचारी किसी व्यक्तिगत जरुरत के लिए भी छुट्टी ले सकता है, जैसे- बीमार होने पर. ऐसी छुट्टी लेने पर वेतन भी नहीं कटता है, लेकिन ऐसी छुट्टी के लिए एक साल में दिनों की संख्या निर्धारित होती है.

सरकारी कर्मचारी को और उसके परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य सुविधाएँ भी मिलती है. एक नियत राशि तक इलाज में लगे खर्चे का भुगतान सरकार द्वारा किया जाता है.

सरकारी कर्मचारियों के वेतन का एक हिस्सा हर महीने सरकार के पास जमा होता है, जिसका इतेमाल कर्मचारी के रिटायरमेंट पर किया जाता है.

रिटायरमेंट के समय सरकारी कर्मचारी को एक बड़ी रकम एकमुश्त मिल जाती है. इसके अलावा उसे हर महीने पेंशन भी मिलता है.

प्राइवेट कंपनी की नौकरी :

कई लोग निजी कंपनियों में काम करते है. कुछ निजी कंपनियाँ काफी बड़ी होती है, जिसके द्वारा लगभग हर वह सुविधा दी जाती है जो सरकारी नौकरी में मिलती है.

स्थाई कर्मचारियों को अक्सर अच्छी तनख्वाह मिलती है और उनकी नौकरी भी सुरक्षित रहती है, लेकिन अस्थाई कर्मचारियों को ऐसी सुविधाएँ नहीं मिलती है.

अस्थाई कर्मचारी :

निजी कंपनियों और कारखानों में अधिकतर लोग अस्थाई मजदुर होते है, जिसे काम के अनुसार पारिश्रमिक मिलता है.

कारखानों में बड़ी भयावह स्थिति होती है, जहाँ काम करने की जगह तंग होती है, रोशनी कम आती है और ताज़ी हवा आने जाने का कोई रास्ता नहीं होता है.

अस्थाई मजदूरों को मजदूरी भी बहुत कम मिलता है. यदि कोई मजदुर शिकायत करता है तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है. इन मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती है, जैसे- पेंशन, स्वास्थ्य सुविधा या छुट्टियाँ.

स्थाई काम और अस्थाई काम में अंतर :

स्थाई काम में नियमित सैलरी मिलती है, जबकि अस्थाई काम में कोई नियमित आय नहीं होती है.

स्थाई काम सुरक्षित रहता है, जबकि अस्थाई काम सुरक्षित नहीं रहता है.

स्थाई काम में अच्छी कमाई होती है, जबकि अस्थाई काम में बहुत कम कमाई होती है.

स्थाई काम में नौकरी से सेवानिवृत्ति पर पैसा मिलता है, जबकि अस्थाई काम में सेवानिवृत्ति पर कोई पैसा नहीं मिलता है.

स्थाई काम में राष्ट्रीय और वार्षिक छुट्टी की सुविधा होती है, जबकि अस्थाई काम में ऐसी कोई सुविधा नहीं होती है.

दिहाड़ी मजदुर :

दिहाड़ी मजदूरों की संख्या काफी अधिक है. जिन लोगों के पास कोई हुनर नहीं होता है, उन्हें दिहाड़ी मजदुर के रूप में काम करना पड़ता है. इन मजदूरों को महीने के कुछ की दिनों तक काम मिल पाता है. अधिकतर दिहाड़ी मजदुर दूर-दराज से एक इलाकों में काम की तलाश में आते है.

शहरों में अत्यधिक किराया और रहने का खर्चा, इनकी सीमित आमदनी पर दवाब उत्पन्न कर देता है. इसलिए अपनी आय का बहुत छोटा हिस्सा ही ये बचत कर पाते है, जिसे वे अपने परिवार के पास गाँव में भेज देते है.

सेवा प्रदाता :

शहरों में सर्विस देने वाले कई लोग और संस्थाएँ है. सर्विस देने वाला किसी माल को नहीं बेचता है बल्कि यह ग्राहकों को विभिन्न प्रकार की सेवाएँ देता है, जैसे – कुरिएर, ट्यूशन, चार्टर्ड अकाउंटेंट, डॉक्टर आदि.

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