इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा आदेश: 26 साल से बकाया वेतन का भुगतान, शिक्षक को मिलेगा एक करोड़ रुपये
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में बेसिक शिक्षा निदेशक को आदेश दिया है कि वे 26 साल से बकाया वेतन के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे शिक्षक लक्ष्मण प्रसाद कुशवाहा का भुगतान एक हफ्ते के भीतर करें। अगर ऐसा नहीं किया गया, तो 30 सितंबर को अदालत में अवमानना की कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा। कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों की लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि इसके परिणामस्वरूप सरकार को 88 लाख रुपये का ब्याज भी चुकाना होगा।इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय की अदालत में हुई, जहां लक्ष्मण प्रसाद की अवमानना याचिका पर विचार किया गया। लक्ष्मण प्रसाद की नियुक्ति मृतक आश्रित कोटे में 2 जुलाई 1994 को हुई थी, लेकिन तब से उन्हें बिना वेतन के पढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
हाईकोर्ट ने 22 अप्रैल 2002 को बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) को नियमित वेतन का भुगतान करने का निर्देश दिया था, लेकिन इसके बाद भी तत्कालीन अधिकारियों ने आदेश का पालन नहीं किया।लक्ष्मण प्रसाद ने 2009 में एक और याचिका दाखिल की, जिसमें बकाया वेतन और ब्याज के भुगतान की मांग की गई। हालांकि, भुगतान न होने के कारण उन्होंने अवमानना याचिका दाखिल की, जो 14 साल बाद भी लंबित रही। कोर्ट ने शिक्षा विभाग से इस मुद्दे पर जवाबी हलफनामा मांगा। हलफनामे में बताया गया कि बेसिक शिक्षा निदेशक को लक्ष्मण प्रसाद के बकाया 1,25,92,090 रुपये के भुगतान के लिए पत्र लिखा गया है।कोर्ट ने अधिकारियों की लापरवाही पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि यह भुगतान taxpayers के पैसे से होगा।
न्यायालय ने बेसिक शिक्षा निदेशक को 30 सितंबर तक लक्ष्मण प्रसाद का पूरा बकाया वेतन और ब्याज का भुगतान कर हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। अनुपालन न करने की स्थिति में अधिकारियों को अदालत में उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है।इस निर्णय ने न केवल लक्ष्मण प्रसाद के लिए न्याय सुनिश्चित किया है, बल्कि अन्य शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए भी एक उदाहरण पेश किया है कि न्याय के लिए लड़ा जा सकता है, भले ही मामला कितना भी लंबा क्यों न हो। अब देखना यह है कि क्या अधिकारी समय सीमा के भीतर इस आदेश का पालन करते हैं या उन्हें अदालत की कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
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