प्रयागराज। खबर की शुरुआत में जिन दो संदर्भों का जिक्र किया गया है, उनमें पहली नजर में कोई रिश्ता नहीं दिखाई पड़ता। लेकिन गहराई में जाने पर पता चलता है कि दोनों ही मामले दलाली के उस ’खेल’ से जुड़े हैं जिसके जरिए शहर में हर साल करोड़ों के वारे-न्यारे हो रहे हैं। जानकारों का कहना है कि अगर भर्ती परीक्षाएं नियमित रूप से होती रहें तो सालभर में यह दलाल लगभग 60 करोड़ रुपये का खेल बहुत आसानी से कर जाते हैं। खास बात यह कि अच्छी-खासी रकम खर्च करने के बाद कुछ ही के सपने पूरे होते हैं जबकि शेष ठगी का शिकार होते हैं। हाल ही में मेडिकल में दाखिले के नाम पर एक छात्रा से 77 लाख रुपये बसूले गए थे। इसी के बाद भर्ती और दाखिले के नाम पर शहर में चल रहा यह खेल लोगों के सामने उजागर हुआ। सपनों के सौदों के इस खेल से जुड़े मामले कुछ सालों से लगातार सामने आ रहे हैं।
शहर में कई ऐसे गिरोह घूम रहे हैं जो परीक्षा पास कराने से लेकर भर्ती व दाखिले तक का ठेका लेते हैं। भर्ती आयोगों से लेकर यूपी बोर्ड तक की परीक्षा में सेटिंग कराने का दावा यह गिरोह करते हैं। परीक्षा में सेटिंग के लिए यह दो तरह के विकल्प देते हैं। पहला विकल्प पेपर लीक कराने का जबकि दूसरा विकल्प सॉल्वर बैठाने का होता है। दो साल पहले शहर में ऐसे ही गिरोह का भंडाफोड़ हुआ था जिसका सरगना नकल माफिया चंद्रमा यादव था। पेपर लीक कराने के बाद इसे अभ्यर्थियों को उपलब्ध कराया जाता है।
इसके अलावा कुछ ऐसे भी गिरोह हैं जो पेपर लीक कराने के बाद अभ्यर्थियों को परीक्षा से एक दिन पहले इसके आंसर बताकर पेपर हल करने कौ ट्रेनिंग भी देते हैं। इसके लिए अभ्यर्थियों से दो लाख से लेकर पांच लाख तक की रकम की डील तय होती है। इसी तरह कॉलेजों में दाखिला दिलाने का भी ठेका गिरोह के सदस्यों की ओर से लिया जाता है। भर्ती के नाम पर वसूली की रकम सात से 10 लाख और दाखिले के नाम पर 50 हजार से शुरू होती है। हर महीने ठगी का शिकार होने वालों की संख्य 100 और प्रत्येक से वसूली की औसतन रकम पांच लाख मान ली जाए तो यह आंकड़ा साल भर में 60 करोड़ का होता है।
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