Year Ender 2021: कोरोना काल में बढ़ी बेरोजगारी, आंकड़ों में समझें पूरा लेखा जोखा
जो पिछले साल इसी अवधि में 9.1 प्रतिशत थी. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के एक निश्चित अवधि पर होने वाले श्रम बल सर्वेक्षण में यह पता चला है. बेरोजगारी दर को श्रम बल में बेरोजगार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.10वें आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के अनुसार, 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए शहरी क्षेत्रों में सीडब्ल्यूएस (वर्तमान साप्ताहिक स्थिति) के हिसाब से बेरोजगारी दर अक्टूबर-दिसंबर 2020 में 10.3 प्रतिशत थी. शहरी क्षेत्रों (15 वर्ष और उससे अधिक उम्र) में महिलाओं की बेरोजगारी दर जनवरी-मार्च 2021 में बढ़कर 11.8 प्रतिशत हो गयी, जो एक साल पहले 10.6 प्रतिशत थी. वहीं अक्टूबर-दिसंबर 2020 में यह 13.1 प्रतिशत थी. पुरुषों के मामलों में यह एक साल पहले की समान अवधि की तुलना में जनवरी-मार्च 2021 में 8.6 प्रतिशत पर स्थिर बनी रही. अक्टूबर-दिसंबर में यह बेरोजगारी दर 9.5 प्रतिशत थी. (30 नवंबर की रिपोर्ट के आधार पर )
अक्टूबर-दिसंबर 2020 में बेरोजगारी दर बढ़कर 10.3%
शहरी क्षेत्रों में सभी उम्र के लिए बेरोजगारी दर अक्टूबर-दिसंबर 2020 में बढ़कर 10.3 प्रतिशत हो गई, जबकि इससे एक साल पहले के इन्हीं महीनों में यह 7.9 प्रतिशत थी. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा किये गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण में यह आंकड़ा सामने आया है.बेरोजगारी या बेरोजगारी दर (यूआर) को श्रम बल में बेरोजगार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है. नौवें आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के अनुसार शहरी क्षेत्रों में सभी उम्र के लिए बेरोजगारी दर जुलाई-सितंबर 2020 में 13.3 प्रतिशत थी.
सर्वेक्षण के पाया गया कि शहरी क्षेत्रों में सभी उम्र के लिए श्रम बल भागीदारी दर अक्टूबर-दिसंबर, 2020 तिमाही में 37.3 प्रतिशत थी. जबकि इससे एक वर्ष पहले की इसी अवधि में यह 37.2 प्रतिशत थी और जुलाई-सितंबर, 2020 तिमाही के दौरान यह 37 फीसदी थी. श्रम बल का मतलब जनसंख्या के उस भाग से है जो वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए श्रम की आपूर्ति करता है. इसलिए इसमें रोजगार प्राप्त और बेरोजगार दोनों व्यक्ति शामिल हैं.
एनएसओ ने अप्रैल 2017 में पीएलएफएस की शुरुआत की थी. पीएलएफएस के आधार पर श्रम बल संकेतकों का अनुमान देते हुए एक तीन महीने का बुलेटिन तैयार किया जाता है. इसमें यूआर, श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर), श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर), वर्तमान में रोजगार और काम के उद्योग में व्यापक स्थिति के आधार पर श्रमिकों का वितरण और साप्ताहिक स्थिति (सीडब्ल्यूएस) जैसे संकेतक शामिल होते हैं. (9 सितंबर की रिपोर्ट के आधार पर)
कोविड-19 से 10.8 करोड़ श्रमिक गरीब, 2022 में 20.5 करोड़ हो सकते हैं बेरोजगार
संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण अप्रत्याशित तबाही से अगले साल 20 करोड़ लोगों के बेरोजगार होने की आशंका है और अभी 10.8 करोड़ कामगार ‘गरीब या अत्यंत गरीब’ की श्रेणी में पहुंच गए हैं. संयुक्त राष्ट्र की श्रम एजेंसी अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन (आईएलओ) ने ‘विश्व रोजगार और सामाजिक परिदृश्य : रूझान 2021’ रिपोर्ट में कहा है कि कोविड-19 महामारी से श्रम बाजार में पैदा संकट खत्म नहीं हुआ है और नुकसान की भरपाई के लिए रोजगार वृद्धि कम से कम 2023 तक नाकाफी होगी.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘ठोस नीतिगत प्रयासों के अभाव के कारण महामारी अप्रत्याशित तबाही लेकर आयी है जिससे कई वर्षों तक सामाजिक और रोजगार परिदृश्य डरावना होगा.’ 2020 में कुल कामकाजी समय के 8.8 प्रतिशत हिस्से का नुकसान हुआ है, यानि 25.5 करोड़ पूर्णकालिक श्रमिक एक साल तक काम कर सकते थे.
रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक संकट से पैदा रोजगार की खाई 2021 में 7.5 करोड़ तक पहुंच जाएगी और 2022 में यह 2.3 करोड़ होगी. रोजगार और कामकाजी घंटे में कमी से बेरोजगारी का संकट उच्च स्तर पर पहुंचेगा. इसके फलस्वरूप 2022 में वैश्विक स्तर पर 20.5 करोड़ लोगों के बेरोजगार होने की आशंका है जबकि 2019 में 18.7 करोड़ लोग बेरोजगार थे. इस तरह बेरोजगारी दर 5.7 प्रतिशत है. कोविड-19 संकट अवधि को छोड़कर यह दर इससे पहले 2013 में थी.
इस साल की पहली छमाही में सबसे प्रभावित क्षेत्रों में लातिन अमेरिका और कैरेबियाई क्षेत्र, यूरोप और मध्य एशिया हैं. रोजगार और कामकाजी घंटे में गिरावट से श्रमिकों की आमदनी में कमी आयी है और इसी अनुपात में गरीबी भी बढ़ी है. 2019 की तुलना में वैश्विक स्तर पर 10.8 करोड़ अतिरिक्त कामगार अब गरीब या अत्यंत गरीब की श्रेणी में पहुंच चुके हैं. यानी ऐसे कामगार और उनके परिवार प्रति दिन प्रति व्यक्ति 3.20 डॉलर से कम खर्च में गुजारा करते हैं. आईएलओ के महानिदेशक गय राइडर ने कहा कि कोविड-19 से उबर पाना महज स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं है बल्कि अर्थव्यवस्था और समाज को पहुंची गंभीर क्षति से भी निपटना होगा.
अमेरिका में बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन
अमेरिका में बेरोजगारी लाभ के लिए आवेदन करने वाले लोगों की संख्या दिसंबर के पहले हफ्ते 52 वर्षों के सबसे निचले स्तर पर आ गई. इसे अमेरिकी रोजगार बाजार के कोविड संकट से उबरने के एक संकेत के तौर पर देखा जा रहा है. अमेरिकी श्रम विभाग ने बताया कि बेरोजगारी भत्ते एवं अन्य सरकारी लाभों के लिए आवेदन करने वाले लोगों की संख्या पिछले हफ्ते 43,000 कम होकर 1,84,000 पर आ गई. यह आंकड़ा सितंबर 1969 के बाद का सबसे निचला स्तर है.
बेरोजगारी का चार सप्ताह का औसत (मूविंग एवरेज) भी गिरकर 2.19 लाख पर आ गया है. यह भी मार्च 2020 में कोविड संकट गहराने के बाद का सबसे कम स्तर है. एम्हर्स्ट पीयरपांट सिक्योरिटीज के मुख्य अर्थशास्त्री स्टीफन स्टैनली ने कहा कि बेरोजगारों की संख्या में पिछले हफ्ते आई गिरावट के पीछे मौसमी उठापटक का योगदान हो सकता है. स्टैनली का मानना है कि बेरोजगारी दर में गिरावट का रुख निहित है और यह महामारी से पहले के स्तर से भी कम हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘श्रमिकों की मांग महामारी-पूर्व से काफी अधिक है और नौकरियां जाने की दर कहीं कम रहने के आसार हैं.’
कोरोना की दूसरी लहर से एक करोड़ लोग बेरोजगार
कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के कारण देश में एक करोड़ से अधिक लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है जबकि पिछले साल महामारी की शुरूआत से लेकर अबतक 97 प्रतिशत परिवारों की आय घटी है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन एकोनॉमी (सीएमआईई) के मुख्य कार्यपालक अधिकारी महेश व्यास ने सोमवार को यह कहा.
व्यास ने न्यूज एजेंसी से कहा कि शोध संस्थान के आकलन के अनुसार बेरोजगारी दर मई में 12 प्रतिशत रही जो अप्रैल में 8 प्रतिशत थी. इसका मतलब है कि इस दौरान करीब एक करोड़ भारतीयों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. उन्होंने कहा कि रोजगार जाने का मुख्य कारण कोविड-9 संक्रमण की दूसरी लहर है. अर्थव्यवस्था में कामकाज सुचारू होने के साथ कुछ हद तक समस्या का समाधान हो जाने की उम्मीद है. लेकिन यह पूरी तरह से नहीं होगी.
व्यास के अनुसार जिन लोगों की नौकरी गयी है, उन्हें नया रोजगार तलाशने में दिक्कत हो रही है. असंगठित क्षेत्र में रोजगार तेजी से सृजित होते हैं, लेकिन संगठित क्षेत्र में अच्छी नौकरियों के आने में समय लगता है. उल्लेखनीय है कि पिछले साल मई में कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिये लगाये गये देशव्यापी ‘लॉकडाउन’ के कारण बेरोजगारी दर 23.5 प्रतिशत के रिकार्ड स्तर तक चली गयी थी. कई विशेषज्ञों की राय है कि संक्रमण की दूसरी लहर चरम पर पहुंच चुकी है और अब राज्य धीरे-धीरे पाबंदियों में ढील देते हुए आर्थिक गतिविधियों की अनुमति देना शुरू करेंगे.
व्यास ने आगे कहा कि 3-4 प्रतिशत बेरोजगारी दर को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ‘सामान्य’ माना जाना चाहिए. यह बताता है कि स्थिति ठीक होने में समय लग सकता है. उन्होंने कहा कि सीएमआई ने अप्रैल में 1.75 लाख परिवार का देशव्यापी सर्वे का काम पूरा किया. इससे पिछले एक साल के दौरान आय सृजन को लेकर चिंताजनक स्थिति सामने आयी है. व्यास के अनुसार सर्वे में शामिल परिवार में से केवल 3 प्रतिशत ने आय बढ़ने की बात कही जबकि 55 प्रतिशत ने कहा कि उनकी आमदनी कम हुई है. सर्वे में 42 प्रतिशत ने कहा कि उनकी आय पिछले साल के बराबर बनी हुई है. उन्होंने कहा, ‘‘अगर महंगाई दर को समायोजित किया जाए, हमारा अनुमान है कि देश में 97 प्रतिशत परिवार की आय महामारी के दौरान कम हुई है.’’
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