Allahabad High Court: सरकारी कर्मचारी के खिलाफ हल्के में नहीं करें विभागीय जांच
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि सरकारी कर्मचारी के खिलाफ विभागीय जांच को हल्के में (कैजुएल) नहीं लिया जाना चाहिए। विभागीय कार्यवाही में 'न्याय हुआ ही नहीं, होना प्रतीत भी हो, के नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए। यह आदेश न्यायमूर्ति एमके गुप्ता व न्यायमूर्ति डा. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने दिया है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा न्यायाधिकरण लखनऊ के आदेश को बरकरार रखा है। अधिकरण ने राज्य द्वारा मृतक कर्मचारी के खिलाफ दिये गये दंड को रद्द कर दिया है।
कोर्ट ने कहा विधिक प्रक्रिया का पालन जरूरी
इस मामले के अनुसार सरकारी कर्मचारी/प्रतिवादी संख्या-2 (मृतक) के खिलाफ विभागीय अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई। जब वह जहानाबाद, जिला पीलीभीत में संग्रह अमीन के रूप में तैनात था। आरोप की जांच की गई। इसमें कर्मचारी को दोषी करार दिया गया। कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और जवाब के बाद 30 अप्रैल 2005 को उसे प्रतिकूल प्रविष्टि के अलावा मूल वेतनमान में वापस कर दिया गया। सजा के खिलाफ अपील और पुनरीक्षण भी खारिज हो गई। अधिकरण में इन आदेशो को चुनौती दी गई। अधिकरण ने कहा कि कर्मचारी को अपने पक्ष में सबूत पेश करने और बचाव का उचित अवसर नहीं दिया गया। याची कर्मचारी की इस दौरान मौत हो गई। अधिकरण ने सभी आदेशों को निरस्त कर दिया, जिसे राज्य सरकार ने चुनौती दी थी।
चीफ इंजीनियर आदेश का पालन करें या फिर हों हाजिर
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नलकूप सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग के चीफ इंजीनियर विष्णु कुमार को अवमानना नोटिस जारी किया है। उन्हें आदेश का पालन करने या 22 जुलाई को स्पष्टीकरण के साथ हाजिर होने का निर्देश दिया है। पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही की जाय? यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने बदायूं के राम नारायण चौधरी की अवमानना याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता राघवेंद्र प्रसाद मिश्र ने बहस की। इनका कहना है कि याची को द्वितीय प्रोन्नत वेतनमान नहीं दिया गया। कोर्ट ने चीफ इंजीनियर कानपुर नगर को याची का प्रत्यावेदन तय करने का निर्देश दिया है। इसकी अवहेलना करने पर यह याचिका दायर की गई है। कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया अवमानना का केस बनता है।
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