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मंगलवार, 15 मार्च 2022

Hijab Verdict : कर्नाटक हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं हिजाब



Hijab Verdict : कर्नाटक हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं हिजाब

 हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने छात्राओं की याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि हिजाब धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। स्कूल-कॉलेज में छात्र यूनिफॉर्म पहनने से मना नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि इस्लाम में हिजाब पहनना अनिवार्य नहीं है। 

कोर्ट ने कहा है कि, स्कूल यूनिफार्म को लेकर बाध्यता एक उचित प्रबंधन है। छात्र या छात्रा इसके लिए इंकार नहीं कर सकते हैं। फैसला आने के बाद सभी न्यायाधीशों की सुरक्षा बड़ा दी गई है। इस मामले की सुनवाई के लिए नौ फरवरी को चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की बेंच का गठन किया गया था। लड़कियों की ओर से याचिका दायर कर मांग की गई थी कि, क्लास के दौरान भी उन्हें हिजाब पहनने की अनुमति दी जाए, क्योंकि हिजाब उनके धर्म का अनिवार्य हिस्सा है। 

25 फरवरी को पूरी कर ली थी सुनवाई

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इस ममाले में 25 फरवरी को सुनवाई पूरी कर ली थी। साथ ही कोर्ट ने अपना फैसला भी सुरक्षित रख लिया था। फैसले को देखते हुए एहतियातन दक्षिण कन्नड़ के जिला कलेक्टर ने आज (15 मार्च) सभी स्कूलों और कॉलेजों में छुट्टी का आदेश दिया है। इसके साथ ही धारा 144 भी लागू की गई है। 

भाजपा ने कांग्रेस पर साधा निशाना 

कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर भारतीय जनता पार्टी ने प्रतिक्रिया दी है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने लिखा, 'सत्यमेव जयते... कांग्रेस और पीएफआई के जो लोग हिजाब का राजनीतिकरण कर रहे थे और लोगों के दिमाग में जहर घोल रहे थे उन्हें कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने फैसले से जवाब दे दिया है। ये लोग अपने वोटबैंक की गंदी राजनीति कर रहे थे। उम्मीद है कि कांग्रेस अब फूट डालो और राज करो की गंदी राजनीति बंद कर देगी।'

क्या है विवाद का कारण 

कर्नाटक सरकार ने राज्य में कर्नाटक एजुकेशन एक्ट-1983 की धारा 133 लागू की थी। इसके तहत सभी स्कूल-कॉलेज में यूनिफॉर्म अनिवार्य कर दी गई है। ऐसे में सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में तय यूनिफॉर्म ही पहननी होगी। वहीं, प्राइवेट स्कूल भी अपनी यूनिफॉर्म चुन सकते हैं। जानकारी के मुताबिक, कर्नाटक में हिजाब को लेकर विवाद की शुरुआत जनवरी 2022 के दौरान हुई थी। उस वक्त उडुपी के एक सरकारी कॉलेज में छह छात्राएं हिजाब पहनकर कॉलेज पहुंच गई थीं। बताया जा रहा है कि कुछ दिन पहले ही कॉलेज प्रशासन ने छात्राओं को हिजाब पहनने के लिए मना किया था। इसके बावजूद छात्राएं हिजाब पहनकर पहुंचीं। उन्हें रोका गया तो दूसरे कॉलेजों में भी विवाद होने लगा। 

10 पॉइंट में समझें कि आखिर कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब विवाद पर क्या कहा और स्कूल-कॉलेजों की यूनिफॉर्म को लेकर अदालत की टिप्पणी क्या रही?

1. कोर्ट ने कहा कि इस्लाम का प्रमुख धर्मग्रंथ कुरान महिलाओं के लिए हिजाब को अनिवार्य नहीं करता। हिजाब पहनने की प्रथा का संस्कृति से लेना-देना हो सकता है लेकिन इसका धर्म से कोई वास्ता नहीं है। इसलिए जो चीज धर्म में ही बाध्यकर नहीं है, उसे कोर्ट में जुनूनी बहसों और सार्वजनिक प्रदर्शनों के जरिए किसी धर्म का अतिआवश्यक अभ्यास नहीं माना जा सकता।  

2. हिजाब को इस्लाम धर्म के आधारभूत वेशभूषा से नहीं जोड़ा जा सकता। ऐसा नहीं है कि अगर हिजाब न पहना जाए तो यह कदम उठाने पापी बन जाते हैं और इस्लाम का सारा वैभव खत्म होने लगता है। कोई भी धर्म हो, जो भी उनके धर्मग्रंथों में लिखा हो। वह पूरी तरह कभी भी अनिवार्य नहीं होता। 

3. कोर्ट ने कहा कि स्कूलों की तरफ से छात्र-छात्राओं के लिए एक यूनिफॉर्म बनाने का प्रावधान उन्हें एक जैसा दिखाने के लिए है और यह संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता के लक्ष्य को भी हासिल करने वाला है। स्कूल वह योग्य स्थान हैं, जो अपनी प्रकृति से ही व्यक्तिगत अधिकारों को थोपने के उलट हैं। स्कूल बच्चों में सामान्य अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने वाली जगहें हैं। 

4. "आखिर क्यों स्कूलों में हिजाब की उचित गुंजाइश नहीं रह जाती? दरअसल, अगर ऐसा प्रस्ताव मान लिया जाता है, तो स्कूल यूनिफॉर्म अपना मूलभूत संदेश ही खो देगी। यूनिफॉर्म इस बात का परिचायक है कि सब छात्र एक जैसे हैं।" 

5. कोर्ट ने छात्राओं की ड्रेस को लेकर कहा, "छात्राओं के दो वर्ग हो सकते हैं- एक जो यूनिफॉर्म के साथ हिजाब पहनें और दूसरा जो इनके बिना स्कूल आएं। लेकिन इससे स्कूलों में एक सामाजिक अलगाव का भाव स्थापित होने लगेगा, जो कि गलत है। एक बार फिर यह एकरूपता के संदेश को खत्म करने वाला होगा, क्योंकि ड्रेस कोड सिर्फ और सिर्फ बच्चों और युवाओं को एक जैसा दिखाने के लिए है। फिर चाहे उनका धर्म और मान्यताएं कुछ भी हों।"

6. जाहिर तौर पर अगर किसी छात्र-छात्रा को अलग से अपनी मान्यताओं या धर्म के आधार पर किसी संस्थान में वेशभूषा पहनने की इजाजत दी गई, तो इससे यूनिफॉर्म तय करने का मकसद ही खत्म हो जाएगा। 

7. युवावस्था ऐसा संस्कार ग्रहण करने वाला समय है, जब पहचान और राय बनना शुरू होती हैं। युवा छात्र अपने आसपास के वातावरण से तुरंत ही चीजों की धारणा बनाना शुरू कर देते हैं और क्षेत्र, धर्म, भाषा, जन्मस्थान और जाति व्यवस्था की बारीकियों को समझने लगते हैं। ऐसे में यूनिफॉर्म का नियम सिर्फ एक ऐसा सुरक्षित स्थान बनाना है, जहां बांटने वाली रेखाओं की कोई जगह न हो।

8. कोर्ट ने कहा कि एक स्कूल ड्रेस का लागू होना और हिजाब, भगवा और बाकी धार्मिक चिह्नों की मनाही होना मुक्ति की दिशा में एक अहम कदम है, खासकर शिक्षा को पाने में यह ज्यादा बेहतर है। यह

9. "हमारे इस फैसले से महिलाओं की स्वायत्ता और उनके शिक्षा के अधिकार नहीं छीने जा रहे हैं, क्योंकि एक क्लासरूम के बाहर वे अपनी मर्जी की वेशभूषा पहनने के लिए स्वतंत्र हैं।" कोर्ट ने यह भी कहा कि आगे इस बात पर बहस हो सकती है कि पर्दा, नकाब पहनने की जबरदस्ती सामान्य तौर पर महिलाओं की आजादी में एक गतिरोध की तरह है, खासकर मुस्लिम महिलाओं के लिए। यह हमारे संविधान के बराबरी के मौके के भाव के भी खिलाफ है। 

10. अदालत ने फैसले में विवाद उठने की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए। जजों ने कहा, "जिस तरह से हिजाब को लेकर उलझन पैदा हुई है, उससे ऐसा लगता है कि इस पूरे विवाद में किसी का हाथ है। सामाजिक अशांति पैदा करने और सद्भाव खत्म करने के लिए ऐसा किया गया लगता है।" अदालत ने कहा, "हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि आखिर अकादमिक सत्र के बीच में अचानक यह मुद्दा क्यों उठ गया।"


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