NEET PG:नीट-पीजी की खाली सीटों के लिए विशेष काउंसिलिंग संभव नहीं- DGHS, SC ने कहा, देश में डॉक्टरों की कमी तो नीट-पीजी में सीटें खाली क्यों
स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर कर कहा कि नीट-पीजी-2021 के लिए खाली सीटों को भरने के वास्ते विशेष काउंसिलिंग करना अब संभव नहीं है। चार दौर की ऑनलाइन काउंसिलिंग पूरी कर ली गई है और अब संबंधित सॉफ्टवेयर बंद हो गया है। इससे पहले शीर्ष अदालत ने नीट-पीजी में 1,456 सीटें खाली रहने पर मेडिकल काउंसिलिंग समिति (एमसीसी) से कड़ी नाराजगी जताई। साथ ही कहा कि अगर देश में डॉक्टरों की कमी है तो नीट-पीजी में सीटें खाली क्यों हैं।
डीजीएचएस ने हलफनामे में कहा कि नीट-पीजी-2021 के लिए अब विशेष 'स्ट्रे काउंसलिंग' अगले सत्र के लिए काउंसिलिंग की पूरी प्रक्रिया को बाधित करेगी। क्योंकि, दो शैक्षणिक सत्रों के लिए काउंसिलिंग एकसाथ नहीं चल सकती है। कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर और विभिन्न अदालती मामलों के कारण नीट-पीजी 2021 की काउंसिलिंग में पहले ही देरी हुई है। कुल मिलाकर नीट-पीजी 2021 की काउंसिलिंग के लिए अखिल भारतीय कोटे के तहत स्ट्रे वेकेंसी राउंड में 2,025 सीटों की पेशकश की गई थी। इसके लिए कुल 1,17,945 उम्मीदवारों ने भाग लिया। स्ट्रे वेकेंसी राउंड के बाद भी 1,456 सीटें खाली रह गई हैं। इनमें से करीब 1,117 सीटें (कुल शेष सीटों का 76.7 प्रतिशत) प्री-पैरामेडिकल से संबंधित हैं, जिनका चयन विभिन्न दौर की काउंसलिंग में भाग लेने वाले उम्मीदवारों द्वारा नहीं किया गया।
न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें खाली रह गई नीट-पीजी की 1,456 सीटों को भरने के लिए विशेष 'स्ट्रे काउंसलिंग' कराने का अनुरोध किया गया है। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, 'एक भी सीट को खाली नहीं जाने दिया जाना चाहिए। यह मेडिकल काउंसिल का कर्तव्य है कि ये सीटें खाली नहीं जाए। काउंसिलिंग के हर चरण के बाद इसी तरह की समस्या आती है। प्रक्रिया को दुरुस्त क्यों नहीं किया जाता। सीटों को खाली छोड़कर हमें क्या हासिल होता है, जबकि हमें डॉक्टरों की जरूरत है। यह न केवल उम्मीदवारों के लिए समस्या उत्पन्न करता है, बल्कि भ्रष्टाचार को भी प्रोत्साहित करता है।'
काउंसलिंग के बीच में और सीट क्यों जोडी जाती है
पीठ ने केंद्र सरकार और एमसीसी की ओर से पेश अधिवक्ता से कहा कि क्या आप छात्रों और उनके माता-पिता के तनाव के स्तर को जानते हैं? आप काउंसलिंग के बीच में क्यों और सीटें जोड रहे हैं। सीटों की संख्या और कितने छात्रों को प्रवेश दिया जाएगा, इसको लेकर कट ऑफ तारीख होनी चाहिए। पीठ ने कहा कि अगर छात्रों को प्रवेश नहीं दिया गया तो अदालत मामले में आदेश पारित कर संबंधित उम्मीदवारों को मुआवजा देने का निर्देश दे सकती है।
डीजीएसएस सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद रहें
पीठ ने सरकार के अधिवक्ता से पूछा कि प्रवेश का प्रभार किसके पास है। इस पर उन्होंने कहा कि यह प्रभार स्वास्थ्य सेवा के महानिदेशक (डीजीएसएस) के पास है। इसके बाद पीठ ने मौखिक टिप्पणी की कि डीजीएचएस गुरुवार को सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद रहें, क्योंकि कुछ जिम्मेदारी तय करने की जरूरत है।
छात्रों का भविष्य दांव पर है
शीर्ष अदालत ने कहा कि मेडिकल के छात्रों का भविष्य दांव पर लगा है। पहले उन्हें कठिन पढ़ाई करनी होती है और फिर परीक्षा देनी होती है। अगर, उन्हें 99 प्रतिशत अंक भी परीक्षा में आ जाते हैं तो पहले उन्हें प्रवेश की समस्या और उसके बाद विशेषज्ञता की समस्या आती है। वहीं, सरकार के अधिवक्ता ने कहा कि वह अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल बलबीर सिंह की अध्यक्षता में काम कर रहे हैं और उन्हें कुछ निजी समस्या है, इसलिए सुनवाई स्थगित की जाए। इस पर पीठ ने कहा कि यह मेडिकल छात्रों के अधिकारों से जुड़ा गंभीर मामला है और केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व केवल एक अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल द्वारा नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने हलफनामे की प्रति याचिकाकर्ताओं को भी देने का निर्देश देते हुए मामले की सुनवाई गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दी।
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