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मंगलवार, 26 जुलाई 2022

एम्स दिल्ली में 367 पद खाली, संसदीय समिति ने की 3 माह के भीतर भर्ती की सिफारिश

 

एम्स दिल्ली में 367 पद खाली, संसदीय समिति ने की 3 माह के भीतर भर्ती की सिफारिश

संसद की एक समिति ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), दिल्ली में शिक्षक संकाय सदस्यों के 367 पद खाली होने का संज्ञान लेते हुए इन्हें तीन महीने के भीतर भरे जाने की सिफारिश की है। समिति ने सुपर-स्पेशियलिटी पाठ्यक्रमों में आरक्षण की वकालत भी की है। 

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विकास में स्वायत्त इकाइयों और संस्थानों की भूमिका पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण संबंधी संसदीय समिति की 15वीं रिपोर्ट में विशेष रूप से एम्स पर ध्यान केंद्रित किया गया है। भाजपा सांसद किरीट पी सोलंकी की अध्यक्षता वाली समिति की मंगलवार को लोकसभा में प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है कि एम्स में कुल 1,111 संकाय पदों में से, 275 सहायक प्रोफेसर और 92 प्रोफेसर के पद रिक्त हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ''इसलिए, समिति की यह सुविचारित राय है कि सभी मौजूदा रिक्त संकाय पदों को अगले तीन महीनों के भीतर भरा जाए। 

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय संसद के दोनों सदनों में प्रतिवेदन प्रस्तुत किए जाने की तारीख से 3 महीने के भीतर एक कार्य योजना प्रस्तुत करे।'' समिति ने कहा कि भविष्य में भी सभी मौजूदा रिक्त पदों को भरने के बाद अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किसी भी संकाय पद को किसी भी परिस्थिति में छह महीने से अधिक समय तक खाली नहीं रखा जाए।  

समिति ने रिपोर्ट में कहा, ''सुपर-स्पेशियलिटी पाठ्यक्रमों में आरक्षण नहीं दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उम्मीदवारों को अभूतपूर्व और अनुचित रूप से वंचित रखा जाता है तथा सुपर-स्पेशियलिटी क्षेत्रों में अनारक्षित संकाय सदस्यों का एकाधिकार होता है।'' उसने कहा, ''आरक्षण नीति को छात्र और संकाय स्तर पर सभी सुपर-स्पेशियलिटी क्षेत्रों में सख्ती से लागू किया जाना चाहिए ताकि वहां भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति संकाय सदस्यों की उपस्थिति सुनिश्चित हो।'' समिति ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के चिकित्सकों एवं छात्रों को विदेश में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने हेतु भेजने के लिए प्रभावी तंत्र स्थापित किया जाए ताकि सभी सुपर-स्पेशियलिटी क्षेत्रों में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व स्पष्ट रूप से देखा जा सके। 

समूह ग के पदों/निचले पदों को नियमित रूप से भरे जाने के बदले आउटसोर्स/संविदा पर रखे जाने को गरीबों को रोजी-रोटी से वंचित करने के समान बताते हुए समिति ने कहा कि सफाईकर्मी, चालक, डाटा ऑपरेटर आदि जैसे गैर-मुख्य क्षेत्रों में भी संविदात्मक/आउटसोर्स नियुक्ति नहीं की जानी चाहिए। उसने कहा कि संविदा नियुक्ति की नीति इन ठेकेदारों के माध्यम से दलित वर्गों के शोषण की गुंजाइश पैदा करती है, इसलिए, समिति सिफारिश करती है कि सरकार किसी भी वर्ग/श्रेणी के वंचितों के इस तरह के शोषण को रोकने के लिए एक तंत्र विकसित करे और इस संबंध में उठाए गए सुधारात्मक कदमों की जानकारी समिति को दी जाए। 

वर्तमान में एम्स के साधारण निकाय में भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का कोई सदस्य नहीं होने के तथ्य को गंभीरता से लेते हुए समिति ने कहा कि यह वास्तव में अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों को निर्णय लेने की प्रक्रिया और नीतिगत मामलों का हिस्सा बनने और साथ ही सेवा मामलों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा करने के अपने वैध अधिकारों से वंचित करता है। 

रिपोर्ट के अनुसार, ''समिति की यह वैध अपेक्षा है कि सेवा मामलों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के हितों की रक्षा के साथ-साथ एम्स प्राधिकरण तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा बनाई जा रही नीति की निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए एम्स के साधारण निकाय में उनका सदस्य होना चाहिए।'' समिति ने कहा कि विभिन्न एम्स में एमबीबीएस और अन्य स्नातक-स्तर तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दाखिले का समग्र प्रतिशत अनुसूचित जाति के लिए 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 प्रतिशत के अपेक्षित स्तर से बहुत कम है। उसने कहा, ''इसलिए, समिति पुरजोर सिफारिश करती है कि एम्स को सभी पाठ्यक्रमों में अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण के निर्धारित प्रतिशत को सख्ती से बनाए रखना चाहिए। समिति इस तथ्य पर न्याय संगत रूप से पुन: जोर देती है कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए और अधिक अवसर सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण का प्रतिशत बनाए रखना अनिवार्य है।''  

Aiims DelhiAssistant Professor Postrecruitment,Sarkari Naukri


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