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बुधवार, 2 नवंबर 2022

MBBS : यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों ने बयां किया दर्द, डॉक्टर की बजाय नर्स बनने को मजबूर

 


MBBS : यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों ने बयां किया दर्द, डॉक्टर की बजाय नर्स बनने को मजबूर

एमबीबीएस कर डॉक्टर बनने का ख्वाब संजोए सैंकड़ों भारतीय स्टूडेंट्स यूक्रेन गए थे। सोचा था कुछ सालों की मेहनत के बाद उनका किसी अस्पताल में अपना एक एसी केबिन होगा और पीछे वाली दीवार पर उनकी एमबीबीएस की डिग्री टकी होगी। लेकिन अब आलम यह है कि उस जंग के मैदान में इन सपनों व उम्मीदों के साथ कुछ ही छात्र रह गए हैं। यूक्रेन - रूस के बीच युद्ध का यह 8वां महीना है। यूक्रेन की अशांत स्थिति ने न सिर्फ भारतीय छात्रों को अपने घर लौटने पर मजबूर किया बल्कि उनका करियर भी बुरी तरह प्रभावित हुआ। छात्र एजुकेशन लोन लेकर विदेश में मेडिकल की पढ़ाई करने गए थे। लेकिन अब वापस आकर उन्हें एमबीबीएस की तुलना में कम प्रतिष्ठित नर्सिंग जैसे कोर्सेज में दाखिला लेना पड़ा।  

यूक्रेन से वापस लौटे भारतीय छात्र निराश हताश हैं और असहाय महसूस कर रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के मुताबिक पश्चिमी यूक्रेन की चेरनिवत्सी में बुकोविनियन स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों ने कहा कि डॉक्टर बनने का सपना टूटने के बाद वे काफी मायूस हैं। अब उन्हें बीएससी, बीबीए और नर्सिंग जैसे कम वेल्यू वाले कोर्स से समझौता करना पड़ा है। केरल के आनंद ए युद्ध की शुरुआत के समय बुकोविनियन स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी में सेकेंड ईयर की पढ़ाई कर रहे थे। संकट की स्थिति में वह भारत वापस आए। यूक्रेन में छह साल की पढ़ाई के लिए उन्होंने बैंक से 15 लाख रुपये का एजुकेशन लोन लिया था। 

आनंद ने कहा, “जब मैंने विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, तो मुझे दिसंबर 2020 से शुरू होने वाले सेमेस्टर के लिए एडमिशन करने के लिए कहा गया था, लेकिन मेरी फ्लाइट रद्द हो गई और मैं तीन दिन देरी से पहुंचा। उन्होंने मुझे प्रवेश देने से इनकार कर दिया और मुझे अगले सेमेस्टर में शामिल होने के लिए कहा। वापस इंडिया लौटना संभव नहीं था, इसलिए मैंने फाउंडेशन कोर्स के लिए 1.5 लाख रुपये एक्स्ट्रा दिए। जब तक मैं भारत लौटा, तब तक मैंने अपने बैंक कर्ज के 3 लाख रुपये और अपने माता-पिता की बचत के 5-6 लाख रुपये फ्लाइट, भोजन, ठहरने आदि पर खर्च कर दिए थे।

गौरतलब है कि फरवरी के अंतिम सप्ताह में यूक्रेन और रुस के बीच शुरू होने के चलते हजारों वहां मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हजारों भारतीय छात्रों को स्वदेश वापस लौटना पड़ा था। फर्स्ट और सेकेंड ईयर के स्टूडेंट्स को फ्रेश मेडिकल एडमिशन के लिए नीट में फिर से बैठने की सलाह दी गई जबकि सीनियर स्टूडेंट्स को ऑनलाइन क्लास जारी रखने की अनुमति दी गई। बाद में इन सीनियर स्टूडेंट्स को कहा गया कि वे ऑनलाइन क्लास सिर्फ थ्योरी की ही ले सकते हैं, प्रैक्टिकल के लिए नहीं। इसका मतलब यह हुआ कि उन्हें मेडिकल पढ़ाई जारी रखने के लिए या तो फिर से युद्धग्रस्त यूक्रेन लौटना पड़ेगा या फिर अन्य किसी देश में ट्रांसफर होना होगा। 

आनंद ने कहा, 'मैं दुविधा में फंस गया था क्योंकि मेरे परिवार के पास मुझे दूसरे देश भेजने के लिए पैसे नहीं थे। आनंद के पिता सेवानिवृत्त हो चुके हैं और परिवार में एकमात्र कमाने वाला सदस्य उनकी मां हैं, जो एक कैंसर पीड़ित महिला हैं, वह अपने बेटे की शिक्षा के लिए सऊदी अरब में एक नर्स के रूप में काम कर रही हैं।'

उन्होंने कहा, “बैंक कर्ज को बंद करने के लिए मुझे अपनी मां का सोना गिरवी रखना पड़ा। मैंने विदेश में पढ़ाई के लिए एक और कर्ज के बारे में पूछताछ की, लेकिन बैंक अनिच्छुक लग रहा था क्योंकि ऋण की राशि यूक्रेन में अध्ययन के लिए उधार ली गई राशि से बहुत अधिक थी।' आनंद ने अब बेंगलुरु के एक नर्सिंग कॉलेज में दाखिला लिया है और उन्हें विदेश में काम मिलने की उम्मीद है।

आनंद ने कहा, 'यह मेरे लिए आसान नहीं था। मैं 21 वर्ष का हूं। मुझे दूसरा वर्ष रिपीट करना पड़ता और चिकित्सा शिक्षा पूरी होने में काफी समय लगता है। हमें भारत में अभ्यास करने के योग्य होने के लिए अतिरिक्त परीक्षाओं को भी पास करना होगा। मैं नहीं चाहता कि मेरी मां इतने लंबे समय तक काम करें। वह जीवित रहने के लिए दवाओं पर निर्भर है। हालांकि वह मुझे एक डॉक्टर के रूप में देखना चाहती थी न कि एक नर्स के रूप में, मेरे पास कोई विकल्प नहीं था।'

आनंद की तरह की उनके क्लासमेट मेलविन शजी जोस ने भी मजबूरन वापस आकर नर्सिंग डिग्री कोर्स में एडमिशन लिया। केरल के कोट्टायम जिले की रहने वाले जोस ने नीट पास कर लिया था और उन्हें बीडीएस सीट मिल रही थी। उन्होंने कहा, 'मैं एक डॉक्टर बनना चाहता था और बीमार लोगों का इलाज करना चाहता था। मैं खुद को दांत साफ करते और रूट कैनाल करते हुए नहीं देखना चाहता।'

यूक्रेन जाने से पहले मेलविन ने दो बार नीट पास किया था, लेकिन 450 के स्कोर के साथ वह केवल डीम्ड प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए पात्र थे, जहां कोर्स की फीस यूक्रेन में विश्वविद्यालयों द्वारा ली जाने वाली फीस से कहीं अधिक है। उन्होंने यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने का फैसला करने से पहले बहुत रिसर्च की। मेल्विन ने कहा, “मैं भारत में एक डीम्ड कॉलेज के लिए पात्र था लेकिन फीस 14 लाख रुपये प्रति वर्ष थी। यूक्रेन में मेरी पूरी पढ़ाई का खर्च, टिकट, खाने रहने का पूरा खर्च 30 लाख रुपये था।


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