निजी संपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट में सबसे बड़ी बहस, आपकी जमीन, घर भी इसके दायरे में
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-39(बी) देश के हर नागरिक को 'आजीविका के पर्याप्त साधनों का अधिकार' देने की बात करता है. मतलब, हर नागरिक के पास जीवन बिताने, अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त संसाधन और अवसर होने चाहिए. रोज़गार, बढ़िया वेतन से लेकर रोटी, कपड़ा, मकान जैसी बुनियादी ज़रूरतों तक. इसी अनुच्छेद-39(बी) पर मंगलवार, 23 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों वाली संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की है.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की सदारत वाली बेंच को तय करना है कि क्या प्राइवेट प्रॉपर्टी अनुच्छेद-39(बी) के तहत 'समुदाय के संसाधन' के तहत आती हैं? माने क्या राज्य किसी निजी संपत्ति को सामुदायिक भलाई के लिए पुनर्वितरित कर सकता है?
बेंच में CJI के साथ जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बी.वी. नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी हैं.
इससे हमको-आपको क्या?
कांग्रेस ने जब से लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता लगाने का वादा किया है, तब से वेल्थ री-डिस्ट्रीब्यूशन के मुद्दे ने जोर पकड़ा हुआ है. इसे लेकर चर्चा तेज़ है. हाल में कांग्रेस ओवरसीज़ के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने अमेरिका के कुछ राज्यों में लागू 'विरासत टैक्स' का ज़िक्र भर किया तो बवाल मच गया. बयान के बाद वो भाजपा के निशाने पर आ गए तो कांग्रेस ने भी उनसे दूरी बना ली. पित्रोदा को अपने बयान के लिए सफ़ाई देनी पड़ी. संसाधन, संपत्ति और टैक्स -- मसला ही ऐसा है.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सामने भी जो मसला है, वो ऐसे ही एक बारीक मुद्दे से जुड़ा हुआ है.
याचिकाएं पहली बार लगाई गई थीं, 1992 में. बाद में 2002 में इसे नौ जजों की बेंच के पास भेज दिया गया. दो दशकों से ज़्यादा समय तक अधर में रहने के बाद आखिरकार 2024 में इस पर फिर से विचार किया जा रहा है.
केस में घुसने से पहले, अनुच्छेद-39(बी) क्या कहता है?
दरअसल, ये राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) में से एक है. इसके मुताबिक़, 'राज्य सामुदायिक संसाधनों के स्वामित्व और नियंत्रण को इस तरह बांट सकता है कि आमजन की भलाई के लिए सर्वोत्तम हो.'
तो क्या राज्य के पास ये शक्ति है कि वो लोगों की संपत्ति को अपने हिसाब से बांट सके? इसके लिए कुछ केस और फ़ैसले देखते हैं:
- 1977 में कर्नाटक सरकार बनाम रंगनाथ रेड्डी केस. पांच जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने स्पष्ट किया था कि निजी संसाधन अनुच्छेद 39(बी) के तहत 'समुदाय के संसाधनों' के अंतर्गत नहीं आते. हालांकि, फ़ैसला चार बनाम एक का था. जस्टिस कृष्णा अय्यर का कहना था कि निजी संपत्ति इसमें शामिल होनी चाहिए. उनके मुताबिक़, नैचुरल हो या मैन-मेड; सार्वजनिक हो या निजी, सब सामुदायिक संसाधन में शामिल हैं. जस्टिस अय्यर के विचार सबको पसंद नहीं आए थे. उनकी राय को अदालत से बाहर कई लोगों ने 'मार्क्सवादी समाजवादी विचारधारा से प्रेरित' बताया था.
- 1983 में संजीव कोक मैनुफ़ैक्चरिंग केस. पांच जजों की बेंच ने जस्टिस अय्यर के मत के आधार पर फ़ैसला सुनाया. कहा कि निजी संपत्ति 'समुदाय के संसाधनों' में शामिल है.
- 1986 में महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी एक्ट 1976 में एक संशोधन किया गया, जो राज्य को कुछ संपत्तियों के पुनर्विकास और अधिग्रहण का अधिकार देता था.
- 1997: मफ़तलाल इंडस्ट्रीज़ बनाम भारत सरकार केस में जस्टिस अय्यर के मत को पुष्ट किया गया और कहा गया कि अनुच्छेद-39(बी) की व्याख्या को 9 जजों की बेंच को भेज दिया जाना चाहिए.
- इसी साल मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन ने महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी एक्ट के संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
- 2002 में प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन केस की सुनवाई कर रही सात जजों की बेंच ने मामले को 9 जजों की बेंच के पास भेज दिया.
केस ठंडे बस्ते में चला गया. अब अपनी इप्तिदा से 31 साल बाद ये केस फिर कोर्ट में है. तर्क-वितर्क शुरू हो रहे हैं.
क्या सुनवाई हुई?
- CJI चंद्रचूड़ के विश्लेषण के मुताबिक़, अनुच्छेद 39(बी) के चार ज़रूरी पहलुओं को देखना ज़रूरी है.
- समुदाय के पास संसाधन कितने हैं? क्या-क्या हैं?
- समुदाय के अंदर इन संसाधनों को कैसे बांटा जा रहा है?
- जिन संसाधनों की बात हो रही है, उनका स्वामित्व और नियंत्रण किसके पास है?
- संसाधनों को निष्पक्ष रूप से, सभी के लाभ के लिए बांटा कैसे जाए?
- हालांकि, CJI का मत जस्टिस कृष्णा अय्यर के मत से अलग था. उन्होंने इसे एक ख़तरनाक़ नज़रिया बताया था. कहा था,
हमें ये समझना होगा कि 39(बी) को एक ख़ास संवैधानिक लोकाचार के तहत तैयार किया गया है. संविधान का मक़सद सामाजिक परिवर्तन लाना था. इसलिए हमें यहां तक नहीं जाना चाहिए कि निजी संपत्ति पर 39(बी) और (सी) का लागू नहीं होगा.
जस्टिस कृष्णा अय्यर के मत पर टिप्पणी करते हुए CJI ने कहा कि उनका मत दार्शनिक है. अगर संपत्ति को विशुद्ध रूप से पूंजीवादी अवधारणा को देखा जाए, तो इसमें संपत्ति के स्वामित्व की बात है. समाजवादी अवधारणा से देखा जाए, तो बराबरी की धारणा है. कुछ भी व्यक्ति का नहीं. सारी संपत्ति पर समुदाय का अधिकार है. बकौल CJI, ये पूरी तरह से समाजवादी दृष्टिकोण है.
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