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गुरुवार, 15 अगस्त 2024

कोलकाता मेडिकल कॉलेज में वीभत्स रेप और मर्डर: ममता बनर्जी सरकार की लापरवाही पर उठे सवाल


कोलकाता रेप और मर्डर केस में एक आरोपी की गिरफ्तारी ने मामले को और संदिग्ध बना दिया है.

 कोलकाता मेडिकल कॉलेज में वीभत्स रेप और मर्डर: ममता बनर्जी सरकार की लापरवाही पर उठे सवाल


कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में शुक्रवार को 31 साल की पोस्ट ग्रेजुएट ट्रेनी डॉक्टर के साथ घिनौनी घटना घटित हुई। इस डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या का मामला सामने आया है, जिसे लेकर पूरे देश में गुस्सा और रोष फैल गया है। यह घटना न केवल कोलकाता बल्कि पूरे देश में निर्भया केस की तरह चर्चा में है। हालांकि, ममता बनर्जी की सरकार की ओर से इस संवेदनशील मामले में प्रतिक्रिया बेहद कमजोर और टालमटोल भरी रही है, जिससे जनता में सरकार के प्रति संदेह और आक्रोश बढ़ गया है। आइए, इस पूरे मामले की गहराई से जांच करते हैं और देखते हैं कि सरकार की लापरवाही के कारण क्या-क्या समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।

टीएमसी नेताओं की चुप्पी और जनता का गुस्सा

कोलकाता महिला डॉक्टर के रेप और मर्डर केस पर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, लेकिन टीएमसी के नेताओं ने इस मामले पर चुप्पी साध रखी है। टीएमसी की प्रमुख नेता महुआ मोइत्रा, जो अक्सर मोदी सरकार के खिलाफ सवाल उठाती हैं, ने इस मामले पर पूछे गए सवालों को अनदेखा कर दिया और कुछ पत्रकारों को ब्लॉक कर दिया। यह तथ्य दर्शाता है कि टीएमसी के नेताओं की प्रतिक्रिया इस जघन्य घटना को लेकर अपर्याप्त रही है।

सेमिनार हॉल का सील न होना: सवालों का जाल

प्रदर्शनकारी डॉक्टरों का कहना है कि जहां इस वीभत्स अपराध को अंजाम दिया गया, उस सेमिनार हॉल को तुरंत सील कर दिया जाना चाहिए था। सामान्य परिस्थितियों में सड़क पर हादसे के बाद उस स्थान को कुछ समय के लिए ब्लॉक कर दिया जाता है, लेकिन यहां घटना स्थल को सील न करना सवाल खड़ा करता है कि कहीं इस मामले में कोई साजिश तो नहीं है। इस सेमिनार हॉल में सीसीटीवी कैमरा भी नहीं था, जो इस घटना की जांच को और भी मुश्किल बना रहा है।

प्रिंसिपल का इस्तीफा और ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया

आरजी कर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल संदीप घोष पर भ्रष्टाचार के कई आरोप पहले से थे। इस वीभत्स घटना के बाद उनके इस्तीफे की मांग तेज हो गई। हालांकि, ममता बनर्जी सरकार ने उनके इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया और उन्हें दूसरे कॉलेज का प्रिंसिपल बना दिया। इससे जनता का विश्वास और भी डगमगा गया है। इसके विपरीत, सरकार ने सुहृता पाल को नए प्रिंसिपल के रूप में नियुक्त किया, जो कि अस्पताल के प्रशासनिक बदलाव को लेकर नयी उम्मीदें जगा रही हैं।

हाई कोर्ट की ओर से सरकार को झाड़

हाई कोर्ट ने इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। कोर्ट ने मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल से कहा कि वे स्वेच्छा से छुट्टी पर चले जाएं, वरना कोर्ट आदेश पारित करेगी। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि जब एक छात्र की मौत हुई थी, तो प्रिंसिपल की ओर से कोई शिकायत क्यों नहीं की गई? यह संदेह पैदा करता है कि कहीं प्रिंसिपल ने इस मामले में संलिप्तता तो नहीं रखी है।

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और संदेह

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार, मृत डॉक्टर के शरीर पर बर्बरता की गई थी, जिसमें एक से अधिक लोगों के शामिल होने का संकेत मिलता है। रिपोर्ट में बताया गया है कि महिला डॉक्टर के प्राइवेट पार्ट्स से 151 ग्राम लिक्विड मिला, जो किसी एक व्यक्ति द्वारा संभव नहीं हो सकता। इसके अलावा, शव की स्थिति और मिले चोटों से यह स्पष्ट होता है कि इस जघन्य अपराध में कई लोग शामिल थे। इस रिपोर्ट ने पुलिस और सरकार के एकल आरोपी के बयान को चुनौती दी है।

परिवार का दर्द और सरकार की लापरवाही

मृत डॉक्टर के परिवार के अनुसार, अस्पताल ने पहले उन्हें बताया कि उनकी बेटी ने आत्महत्या की है, जबकि वास्तविकता कुछ और ही थी। जब परिवार अस्पताल पहुंचे, तो उन्हें तीन घंटे तक खड़ा रखा गया और मृतक की बॉडी देखने की अनुमति नहीं दी गई। जब बॉडी देखने को मिली, तो उसके शरीर पर खून और अत्यधिक बर्बरता के निशान थे। यह दर्शाता है कि अस्पताल प्रशासन ने इस मामले में लापरवाही की और परिवार को सच से वंचित रखा।

सीबीआई जांच की मांग और राजनीतिक खेल

भारतीय जनता पार्टी और इंडिया गठबंधन के दलों ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की है। राज्य सरकार ने इस मुद्दे को सीबीआई को सौंपने में विलंब किया, जिससे सबूतों के नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया। सरकार ने इस संवेदनशील मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया, जिससे जनता का विश्वास और भी डगमगाया। अगर सरकार ने समय पर सीबीआई जांच का आदेश दिया होता, तो शायद इस मामले में हाई कोर्ट को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

संदेशखाली और पिछली घटनाओं से सबक

पश्चिम बंगाल सरकार को इससे पहले भी संदेशखाली मुद्दे पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। शाहजहाँ शेख की गिरफ्तारी लंबी गुमशुदगी के बाद तब हुई थी जब हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को अल्टीमेटम दिया था। हालांकि, सरकार ने अपनी पिछली गलतियों से कोई सबक नहीं सीखा और जनता का विश्वास खो दिया। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुए वीभत्स रेप और मर्डर केस ने सरकार की लापरवाही और निष्क्रियता को उजागर किया है। ममता बनर्जी की सरकार की ओर से इस मामले में अपनाया गया रवैया और टीएमसी नेताओं की चुप्पी ने जनता के बीच सरकार के प्रति संदेह को और बढ़ा दिया है। इस मामले में सीबीआई जांच की तत्काल आवश्यकता है ताकि दोषियों को सजा मिल सके और पीड़ित परिवार को न्याय मिल सके।इस प्रकार की घटनाओं के प्रति सरकार की निष्क्रियता और संवेदनहीनता की कीमत हमें कई बार चुकानी पड़ती है। यह समय है कि सरकार को कठोर कदम उठाने चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे जघन्य अपराधों की पुनरावृत्ति न हो और सभी को न्याय मिल सके।

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