नरेंद्र मोदी की यूक्रेन यात्रा: भारत-रूस संबंधों पर प्रभाव और वैश्विक कूटनीति का नया अध्याय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को पोलैंड और यूक्रेन की यात्रा शुरू की, जो भारतीय कूटनीति के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ है। नरेंद्र मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जो यूक्रेन की यात्रा पर जा रहे हैं। यह यात्रा विशेष महत्व रखती है क्योंकि रूस और यूक्रेन के बीच पिछले ढाई वर्षों से जारी युद्ध की स्थिति में यह कदम उठाया जा रहा है। मोदी की यह यात्रा तब हो रही है जब हाल ही में उन्होंने रूस की यात्रा की है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या भारत रूस के साथ अपने रिश्तों को संभावित रूप से प्रभावित कर रहा है।
यूक्रेन यात्रा का समय और उद्देश्य
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विश्लेषक ब्रह्म चेलानी ने इस यात्रा पर चिंता जताते हुए लिखा कि यूक्रेन की यात्रा का समय उपयुक्त नहीं है और इसके उद्देश्य को लेकर भी अस्पष्टता है। उनके अनुसार, यूक्रेन के हालिया आक्रमण ने युद्धविराम की संभावनाओं को धक्का पहुंचाया है और किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यूक्रेन यात्रा की यह पहली बार हो रही है। चेलानी ने सवाल उठाया कि क्या भारत सरकार इस स्थिति की संवेदनशीलता को समझ रही है। हालांकि, यह भी सच है कि कूटनीति में हर देश अपने लाभ को प्राथमिकता देता है, और भारत की यह यात्रा भी इसी परिप्रेक्ष्य में देखी जानी चाहिए।
भारत-रूस रक्षा संबंध और यूक्रेन की भूमिका
भारत और रूस के बीच लंबे समय से रक्षा सामग्री की खरीददारी का रिश्ता रहा है। यूक्रेन के रूस से अलग होने के बाद, कई कंपनियां जिनका नियंत्रण अब यूक्रेन के पास है, भारत के लिए महत्वपूर्ण हो गई हैं। भारत के पास कई ऐसे रक्षा उपकरण हैं जिनका निर्माण यूक्रेन में हुआ है या अभी भी हो रहा है। इनमें भारतीय नौसेना के युद्धपोतों के लिए गैस टरबाइन इंजन और भारतीय वायुसेना के AN-32 विमान शामिल हैं। यूक्रेन की सरकारी कंपनी जोर्या-मैशप्रोक्ट वॉरशिप द्वारा गैस टर्बाइन इंजनों के निर्माण के लिए भारतीय कंपनियों के साथ बातचीत जारी है। भारत ने यूक्रेन के STE के साथ 105 AN-32 विमानों के अपग्रेडेशन और उनकी लाइफ को 40 साल तक बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण समझौता किया है। यह प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं हो पाया है और भारत इसे जल्द से जल्द पूरा करने के प्रयास में है। इसके अलावा, भारत और यूक्रेन के बीच गैस टर्बाइन इंजन के संयुक्त निर्माण पर भी विचार हो सकता है।
वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति और प्रतिक्रिया
ब्रिटिश नेता और पूर्व पीएम टोनी ब्लेयर के सलाहकार रहे पीटर मंडेलसन ने इस यात्रा को एक महत्वपूर्ण अवसर बताया है। उनका कहना है कि यह यात्रा भारत के वैश्विक मंच पर उभरने का एक ऐतिहासिक मौका हो सकती है। भारत अपनी गुटनिरपेक्ष नीति को आगे बढ़ाकर वैश्विक शांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। पिछले दो वर्षों में भारत और पश्चिमी देशों के बीच इस मुद्दे पर मतभेद रहे हैं कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से कैसे निपटा जाए। अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने बार-बार भारत से रूस की निंदा करने और पश्चिमी प्रतिबंधों में शामिल होने की अपील की, लेकिन भारत ने रूस के साथ अपने सुरक्षा और आर्थिक संबंधों को बनाए रखा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने भी मोदी की यूक्रेन यात्रा की सराहना की है। थरूर के अनुसार, यह यात्रा भारत के दोनों युद्धरत देशों के प्रति चिंता और तटस्थ भूमिका को दर्शाती है, और राष्ट्रपति जेलेंस्की से मुलाकात एक सकारात्मक संकेत हो सकती है।
रूस-चीन संबंध और भारत की चिंताएं
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने नए कार्यकाल की पहली विदेश यात्रा के लिए चीन को चुना है, और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पुतिन के साथ मिलकर एक नए साझेदारी युग की शुरुआत की है। चीन और रूस के बीच संबंध तेजी से मजबूत हो रहे हैं, और यह भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है। रूस यदि भारत के सबसे बड़े दुश्मन के साथ दोस्ती बढ़ा रहा है, तो भारत को भी यह दिखाना होगा कि वह केवल पिछलग्गू नहीं है। इसके अलावा, रूस के संबंध उत्तर कोरिया और ईरान के साथ भी गहरे हो रहे हैं, जो भारत के लिए महत्वपूर्ण है।
चीन और रूस की बढ़ती दोस्ती और भारत का दृष्टिकोण
चीन और रूस की बढ़ती दोस्ती के कारण भारत ने अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति का समर्थन किया है, जो क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, व्यापार और निवेश के लिए वादा करती है। भारत को यह चिंता है कि चीन बंगाल की खाड़ी में अपनी नौसैनिक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए रूस पर दबाव डाल सकता है।
भू-राजनीतिक गठबंधन और भारत की भूमिका
पीटर मंडेलसन का कहना है कि रूस और चीन के बीच संबंध अब एक भू-राजनीतिक और सैन्य गठबंधन में बदल चुके हैं, जिसमें उत्तर कोरिया और ईरान भी शामिल हैं। यह गठबंधन एक लोकतंत्र विरोधी धुरी बना रहा है, जो कानून के शासन, मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की पवित्रता को नजरअंदाज करने के लिए तैयार है। भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह इस गठबंधन के खिलाफ खड़ा हो और वैश्विक और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने में नेतृत्व दिखाए।
पोलैंड और यूक्रेन के साथ भारत का दीर्घकालिक जुड़ाव
1979 के बाद से यह किसी भारतीय प्रधान मंत्री की पोलैंड की पहली यात्रा है, जब मोरारजी देसाई ने वारसॉ का दौरा किया था। सोवियत संघ के पतन के बाद और यूक्रेन के स्वतंत्र होने के बाद से किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने कीव का दौरा नहीं किया। ब्रिटिश भू-राजनीतिक विचारक हैलफोर्ड मैकिंडर ने 20वीं सदी के अंत में कहा था कि जो पूर्वी यूरोप पर शासन करता है, वही हृदयभूमि पर शासन करता है; जो हृदयभूमि पर शासन करता है, वही विश्व-द्वीप पर शासन करता है; और जो विश्व-द्वीप पर शासन करता है, वही विश्व पर शासन करता है। रक्षा विशेषज्ञ सी राजमोहन का कहना है कि भारत को मध्य और पूर्वी यूरोप के इस नए संघर्ष में निष्क्रिय दर्शक नहीं बनना चाहिए। मोदी की पोलैंड और यूक्रेन यात्रा भारत की विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकती है और इसे एक बार की घटना के रूप में नहीं देखना चाहिए। भारत को पोलैंड, यूक्रेन और मध्य यूरोप के साथ स्थायी और दीर्घकालिक जुड़ाव की दिशा में कदम उठाने चाहिए।
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