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बुधवार, 8 जनवरी 2025

महात्मा गांधी का 1918 कुंभ यात्रा संगम में डुबकी लगाने से अंग्रेज क्यों घबराए?


107 साल पहले महात्मा गांधी ने संगम किनारे कुंभ में लगाई थी डुबकी, क्यों डर गए थे अंग्रेज?

महात्मा गांधी का 1918 कुंभ यात्रा संगम में डुबकी लगाने से अंग्रेज क्यों घबराए?

स्वतंत्रता आंदोलन गति पकड़ रहा था. महात्मा गांधी खुद देश भर में घूमकर लोगों से संपर्क कर रहे थे. इसी क्रम में वह साल 1915 में हरिद्वार कुंभ तो साल 1918 में प्रयागराज महाकुंभ भी आए. इस दौरान उन्होंने ना केवल संगम में डुबकी लगाई, बल्कि यहां उन्होंने संत समाज और देख भर से आए श्रद्धालुओं से मुलाकात भी की. महात्मा गांधी की इस कोशिश से अंग्रेज डर गए थे. आलम यह था कि साल 1942 में जब अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था, उस समय कुंभ आने के लिए बसों और ट्रेनों के टिकटों की बिक्री बंद कर दी गई.


दरअसल स्वतंत्रता सेनियों के लिए इस तरह के मेले ही लोगों को जागरुक करने के अच्छे माध्यम हुआ करते थे. उन दिनों स्वतंत्रता सेनानी भी अपना संदेश लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रयाग कुंभ के तीर्थ पुरोहितों (प्रयागवाल) की तर्ज पर प्रतीकों का इस्तेमाल करते थे. इस तरह के प्रतीक आमतौर पर लोगों को किसी स्थान विशेष पर इकट्ठा करने के लिए लगाए जाते थे. कहा तो यह भी जाता है कि 1857 की क्रांति के पहले रानी लक्ष्मीबाई भी प्रयागराज पहुंची थीं और यहां उन्होंने एक तीर्थ पुरोहित के घर पर प्रवास किया था.


लक्ष्मीबाई के साथ लड़े थे 2 हजार नागा साधु

यही वजह है कि जब लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ रही थीं तो उनके साथ ग्वालियर में नागा साधु बाबा गंगादास की शाला से जुड़े 2 हजार नागा साधुओं ने साथ दिया था. हालांकि इस युद्ध में 745 साधु शहीद हो गए थे. यही नहीं, 1857 की क्रांति में प्रयागवाल शामिल हुए थे. यही वजह है कि इलाहाबाद पहुंचे कर्नल नील ने 15 जून, 1857 को यहां प्रयागवालों की बस्ती में बम बरसाया था. इसी क्रम में गोपालकृष्ण गोखले की सलाह पर महात्मा गांधी 1918 में प्रयागराज आए थे. उनकी इस यात्रा से अंग्रेज इतना डर गए थे कि कुंभ में भीड़ को रोकने के लिए बसों और ट्रेनों में टिकटों की बिक्री बंद कर दी गई.


भीड़ रोकने के लिए अंग्रेजों ने उड़ाई अफवाह

खुद गांधी जी ने भी इस यात्रा का जिक्र 10 फरवरी 1921 को हुई फैजाबाद जनसभा में किया था.यह स्थिति 1930 और 1942 के कुंभ में भी रही. ब्रिटिश सरकार ने भले ही इन दोनों कुंभ का आयोजन तो करा दिया, लेकिन भीड़ को रोकने की भरपूर कोशिश की. यहां तक कि 1942 के कुंभ का तो आधिकारिक ऐलान तक नहीं किया गया. बल्कि अंग्रेजों ने अफवाह उड़ाने की कोशिश की कि कुंभ मेले में जापान बमबारी कर सकता है. क्रांतिकारियों से बुरी तरह डरी अंग्रेजी सरकार को डर यह था कि इतनी भीड़ स्वतंत्रता सेनानी किसी भी तरफ डायवर्ट कर सकते हैं. ऐसा होने पर इलाहाबाद छोड़कर अंग्रेजों को भागना ही पड़ेगा.

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