EWS कोटे के तहत मिल रहे 10% आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा आरक्षण संविधान का उल्लंघन नहीं
भारत में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट : भारत के मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित की अगुवाई में शीर्ष अदालत की पांच-जजों की संविधानिक पीठ इस मामले में पर अपना फैसला सुनाया। 5 में से 4 जजों ने EWS कोटा के तहत मिल रहे 10% आरक्षण को सवैंधानिक करार दिया। सुबह से ही इस बात को लेकर चारों ओर चर्चा का माहौल था कि आखिर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय किस दिशा में होगा। लेकिन आखिरकार सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की 4 ने इसे संवैधानिक करार देते हुए अपना अंतिम निर्णय जारी किया।
भारत का सर्वोच्च अदालत आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को नौकरी और शिक्षा में मिल रहे 10% आरक्षण की संवैधानिक वैधता पर सोमवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि आरक्षण सविंधान का उल्लंघन नहीं करता। भारत के मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित की अगुवाई में शीर्ष अदालत की पांच जजों की संविधानिक पीठ इस मामले पर अपना फैसला जारी किया है।
5 जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, एस रवींद्र भट, बेला एम त्रिवेदी और जेबी पारदीवाला भी शामिल हैं। 27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में 103 वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद कोटा की वैधता पर फैसला सुरक्षित रख लिया। जिसने भारत में ईडब्ल्यूएस आरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया। मैराथन सुनवाई साढ़े छह दिन तक चली थी।
EWS आरक्षण 3 प्रमुख मुद्दे-
EWS आरक्षण के मुद्दे पर फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन मुख्य मुद्दे तय किए थे:
1. क्या ईडब्ल्यूएस कोटा लागू करने के लिए 103वां संविधान संशोधन अधिनियम राज्य को आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षण सहित विशेष प्रावधान करने की अनुमति देकर संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है।
2. क्या यह संशोधन राज्य को निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में प्रवेश के संबंध में विशेष प्रावधान करने की अनुमति देकर बुनियादी ढांचे का उल्लंघन करता है।
3. क्या यह एसईबीसी/ओबीसी, एससी/एसटी को ईडब्ल्यूएस आरक्षण से बाहर करके संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है।
EWS आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने 40 याचिकाओं पर सुनवाई की और उनमें से अधिकांश, जिनमें 2019 में 'जनहित अभियान' द्वारा दायर की गई प्रमुख याचिका शामिल है। जिसने संविधान संशोधन (103 वां) अधिनियम 2019 की वैधता को चुनौती दी। (पीटीआई)
EWS कोटा पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: भारत में आरक्षण के लिए 50% की सीमा
याचिकाकर्ताओं ने ईडब्ल्यूएस कोटा की वैधता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि यह भारत में आरक्षण के लिए लागू 50% की सीमा का उल्लंघन करता है। सन् 1992 में इंद्रा साहनी जो कि मंडल आयोग के नाम से प्रसिद्ध मामले की सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि "कुछ असाधारण स्थितियों को छोड़कर आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिए"।
EWS कोटा को लेकर 103वें संविधान संशोधन की वैधता: सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच 103वें संविधान संशोधन की वैधता से जुड़े कई कानूनी मुद्दों पर अपना फैसला सुनाया।103वें संशोधन के माध्यम से, अनुच्छेद 15(6) और 16(6) को भारत के संविधान में पेश किया गया था। जिसमें एससी, एसटी और ओबीसी के अलावा अन्य व्यक्तियों को नौकरियों और प्रवेश में 10% आरक्षण दिया गया। जिनकी वार्षिक पारिवारिक आय ₹8 लाख से कम है।
कानूनी मुद्दे- म क्या संशोधन राज्य को आर्थिक मानदंड या निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में प्रवेश के संबंध में विशेष प्रावधानों के आधार पर आरक्षण जैसे विशेष प्रावधान करने की अनुमति देकर संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है। चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, एस रवींद्र भट, बेला एम त्रिवेदी और जेबी पारदीवाला की पांच जजों की बेंच ने 27 सितंबर को मैराथन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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