सरकार बदल गई, लेकिन 20 हजार अधिशेष शिक्षकों पर कोई फैसला नहीं,डीपीसी नहीं होने से लाभ भी अटका
बीकानेर. हिंदी माध्यम स्कूलों को महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूल में रूपांतरित करने और माध्यमिक स्कूलों को उच्च माध्यमिक तथा प्राथमिक स्कूलों को सीधे ही उच्च प्राथमिक स्कूलों में क्रमोन्नत करने से तकरीबन 20 हजार शिक्षक अधिशेष हो गए हैं।
यह स्थिति करीब एक साल से है। अब सरकार भी बदल गई है, लेकिन इन अधिशेष शिक्षतों पर अब तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। हालांकि वेतन को लेकर उन्हें कोई तनाव नहीं है, लेकिन स्थाई पदस्थापन नहीं मिलने के कारण तनाव में हैं।
शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में कई स्कूलों में शिक्षक अधिशेष बैठे हैं। इन शिक्षकों को पूर्व में तो कार्य व्यवस्था के तहत कई स्कूलों एवं कार्यालयों में लगा रखा था, लेकिन नई सरकार के गठन के बाद प्रतिनियुक्ति समाप्त करने के फरमान के बाद वापस उन्हें स्कूलों में भेज दिया गया है।
प्रदेश में कांग्रेस सरकार में सैकंडरी स्कूलों को क्रमोन्नत कर दिया गया था। इसके अलावा कई हिंदी माध्यम स्कूलों को भी अंग्रेजी माध्यम में तब्दील कर दिया गया था। ऐसे में इन स्कूलों में कार्यरत शिक्षक अधिशेष हो गए थे।
डीपीसी जरूरी
राजस्थान शिक्षक संघ (शेखावत) के प्रदेश मंत्री श्रवण पुरोहित के मुताबिक, अगर शिक्षकों की डीपीसी हो जाएगी, तो कई पद रिक्त हो जाएंगे। ऐसे में इन अधिशेष शिक्षकों का समायोजन किया जा सकता है। इसके अलावा जो स्कूल एकल शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं। वहां पर भी इन शिक्षकों का समायोजन किया जा सकता है।
चार निदेशक बदल गए, हल किसी ने न खोजा
शिक्षकों के अधिशेष होने के बाद शिक्षा निदेशालय में चार निदेशक बदल गए। इन सभी को अधिशेष शिक्षकों की पूरी जानकारी थी। इसके बाद भी कोई हल नहीं निकाला। अब प्रारंभिक एवं माध्यमिक शिक्षा निदेशक अलग-अलग हो गए हैं। उसके बाद भी मामला नहीं सुलझा है। दूसरी ओर, नई भर्तियों से रिक्त पद भरने से इन अधिशेष शिक्षकों की चिंता और बढ़ गई है। हकीकत यह है कि गत दिनों प्रतिनियुक्तियां समाप्त होने के कारण कई स्कूलों में एकल शिक्षक ही रह गए हैं। अगर अधिशेष शिक्षकों को इन स्कूलों में लगाया जाता है, तो पाठ्यक्रम पूरा करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। अधिशेष शिक्षकों में दिव्यांग, विधवा, परित्यक्ता, कैंसर सहित कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित शिक्षक भी शामिल हैं।
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