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गुरुवार, 28 मार्च 2024

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट: 44 देशों में 2 लाख 79 हजार बच्चों पर अध्ययन,हर छठा बच्चा हो रहा साइबर-बुलिंग का शिकार, पीड़ितों में बच्चियां ज्यादा

 

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट: 44 देशों में 2 लाख 79 हजार बच्चों पर अध्ययन,हर छठा बच्चा हो रहा साइबर-बुलिंग का शिकार, पीड़ितों में बच्चियां ज्यादा


डेनमार्क. बच्चों की ऑनलाइन सक्रियता बढ़ने के साथ ही दुनिया भर में बच्चों की साइबर-बुलिंग (साइबर उत्पीड़न) के मामले भी बढ़े हैं। बुधवार को जारी डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट, ’स्कूल जाने वाले बच्चों में सेहतमंद आचरण’ में दावा किया गया है कि दुनिया के 44 देशों में हर छठा बच्चा साइबर-बुलिंग का सामना कर रहा है।


रिपोर्ट के अनुसार 15 फीसदी बच्चे और 16 फीसदी बच्चियों ने महीने में एक बार साइबर-बुलिंग का सामना किया। रिपोर्ट के अनुसार 11 से पन्द्रह साल के 16 फीसदी बच्चे 2022 में साइबर-बुलिंग के शिकार हुए। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड महामारी ने बच्चों के एक दूसरे के प्रति आचरण में बदलाव ला दिया है। इस दौरान बच्चों में साथियों की वर्चुअल हिंसा का तेजी से चलन बढ़ा। रिपोर्ट के अनुसार, इन चार साल में स्कूल में भी बुलिंग बढ़ी है। करीब 11 फीसदी बच्चों ने स्कूल में पिछले एक माह में दो से तीन बार बुलिंग की शिकायत की है, जबकि 4 साल पहले ऐसी शिकायत करने वाले बच्चों की संख्या 10% थी।


साइबर-बुलिंग से पीड़ित

साइबर-बुलिंग करने वाले

साइबरबुलिंग के बढ़ रहे मामले


पीड़ितों में आते हैं आत्महत्या के विचार

अध्ययनों में पाया गया है कि साइबर-बुलिंग की सबसे खतरनाक बात यह है कि यह प्राय: माता-पिता और शिक्षकों को भी नजर नहीं आता। अमरीका नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अध्ययन में पाया गया कि साइबर-बुलिंग के शिकार बच्चों-किशोरों में आत्महत्या के विचार की प्रवृत्ति चार गुना बढ़ जाती है।


छह घंटे ऑनलाइन बिता रहे बच्चे

रिपोर्ट के अनुसार, बच्चे रोजाना 6 घंटे ऑनलाइन बिता रहे हैं, ऐसे में साइबर-बुलिंग व हिंसा में छोटा सी भी बढ़ोतरी बच्चों पर बड़ा असर डाल सकती है। रिपोर्ट में 44 देशों के 2 लाख 79 हजार बच्चों पर किए अध्ययन में सबसे अधिक साइबर-बुलिंग बुल्गारिया में दर्ज की गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि माता-पिता की सामाजिक स्थिति का बच्चों की साइबर-बुलिंग पर कोई खास असर नहीं देखा गया


बैठने के घंटे बढ़े, धमनियां हो रहीं कठोर

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और दो अन्य यूरोपीय विश्वविद्यालयों के समन्वित अध्ययन में यह पाया गया है कि बच्चों और वयस्कों में बैठने के घंटे बढ़कर छह से नौ घंटे हो चुके हैं और बच्चे अब शारीरिक गतिविधियों से दूर हो रहे हैं। इस वजह से उनकी धमनियों का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है और वे कठोर होती जा रही हैं। इसके कारण उनमें वसा जनित मोटापा, खून में कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर, सूजन, उच्च रक्तचाप और बढ़े हुए दिल का खतरा बढ़ रहा है। इन कारणों से उनकी अकाल मौत का खतरा 47 फीसदी बढ़ जाता है।


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