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सोमवार, 3 जनवरी 2022

यूपी विधान सभा चुनाव 2022: शिक्षकों की पुरानी पेंशन बहाल करने वाली पार्टी को समर्थन देने की घोषणा



यूपी विधान सभा चुनाव 2022: शिक्षकों की पुरानी पेंशन बहाल करने वाली पार्टी को समर्थन देने की घोषणा

सिक शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन उत्तर प्रदेश के संस्थापक, प्रदेश अध्यक्ष डा. महेंद्र कुमार यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश में लगभग 16 लाख राज्य कर्मचारी कार्य कर रहे हैं। अगर देखा जाए तो इनके परिवार को मिला करके यह संख्या सरकार बनाने व सरकार गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। उत्तर प्रदेश के आगामी 2022 के विधान सभा चुनाव में प्रदेश के सभी शिक्षक, कर्मचारी, अधिकारी अब उसी राजनीतिक पार्टी को अपना मत और समर्थन देंगे, जो लिखित रूप से अपने घोषणा पत्र में पुरानी पेंशन बहाली की बात करेगा। अब सब शिक्षक, कर्मचारी, अधिकारी किसी भी दशा में जाति, धर्म और राजनीति पार्टी में बटने वाले नहीं है।

उन्‍होंने कहा कि वर्ष 2004 से सरकारी सेवा में आने वाले सभी राज्य कर्मचारी और केंद्र कर्मचारियों की पुरानी पेंशन व्यवस्था सरकार ने कर्मचारियों के लाख विरोध करने के बाद भी खत्म कर दी। नवीन पेंशन स्कीम जबरन लागू कर दी गई है। सभी राजनीतिक दलों के विधायक, सांसद पुरानी पेंशन का लाभ ले रहे हैं, यह गलत है।

एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष डा. महेंद्र कुमार ने कहा कि विधायक, सांसद को पुरानी पेंशन नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि राजनीति नौकरी या रोजगार नहीं है। यह मुफ्त समाज सेवा है। दूसरी तरफ सभी राजनीतिक पार्टियों के विधायक, सांसद समाज सेवा की आड़ में एक स्वर में अपने निजी लाभ के लिए नियम बनाकर उसे लागू कर देते हैं। आखिर एक देश में दो नियम कैसे हो सकता है। यह लोकतंत्र की हत्या जैसा है।

उन्‍होंने कहा कि आज पूरे देश में राज्य और केंद्र के कुल सरकारी शिक्षक, कर्मचारी और अधिकारियों की संख्या लगभग 70 लाख से ऊपर है। यह सभी लोग लगभग 30 से 35 वर्ष सरकारी सेवा करते हैं फिर भी इन्हें विसंगतियों से भरा नवीन पेंशन स्कीम सरकार द्वारा दिया जाता है। 1954 में लागू हुए विधायक, सांसदों के वेतन भत्ता एवं पेंशन अधिनियम में 29 बार ये सब मनमाने तरीके से और अपने सुविधाजनक संशोधन किए हैं।

बोले कि शुरू में संविधान सभा ने इनके लिए पुरानी पेंशन का प्रावधान नहीं किया था। सरकारी कर्मचारी लगभग प्रत्येक दिन 8 घंटे कार्य करता है और कुछ विभागों में कभी-कभी यह कार्य 24 घंटे का भी हो जाता है। ये सभी नपी तुली एक निश्चित पगार पर ही कार्य करते हैं और जब रिटायर होने के पश्चात इस कमरतोड़ महंगाई में मात्र 3000 से 3500 रुपये और किसी किसी को इससे भी कम नवीन पेंशन मिलती है तो इस थोड़ी सी रकम में अपनी बची जिंदगी बूढा लाचार व्यक्ति कैसे गुजारे। उसको इस उम्र में पैसे की अति आवश्यकता होती है, इसके विपरीत विधायक और सांसद को दी जाने वाली पुरानी पेंशन हैरान कर देने वाली होती है। न इनके लिए कोई निश्चित सीमा है और न ही नियम। जहां इन्हें एक दिन सांसद विधायक बनने पर पुरानी पेंशन से आच्छादित किया जाता है वही इन कर्मचारियों को 35 साल तक कार्य करने पर विसंगतियों से भरी नवीन पेंशन स्कीम दी जाती है। जो शेयर मार्केट पर आधारित होती है। इसकी कोई गारंटी नहीं होती है।

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखा जाए तो सभी पार्टियां हम सभी कर्मचारियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करती नजर आती हैं। इधर डेढ़ दशक से जो भी राजनीतिक पार्टी विपक्ष में बैठता है वह सत्ता पक्ष को पुरानी पेंशन बहाल करने के लिए लेटर लिखता है और कभी-कभी सदन में भी पुरानी पेंशन बहाली पर झूठी वकालत भी करता है। वहीं विपक्ष जब सत्ता पक्ष में होता है तो नवीन पेंशन स्कीम का झूठा फायदा गिनाने में लग जाता है। पुन: फिर विपक्ष में बैठी पार्टी भी यही नौटंकी शुरू कर देती है।


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