दो साल में पांच हजार बच्चों ने छोड़ दिया स्कूल, फ्री पढ़ाई, यूनिफॉर्म, किताब और भोजन कुछ नहीं आया काम
मेरठ जिले के सैकड़ों बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। अरबों रुपये खर्च करने के बाद भी इन तक शिक्षा नहीं पहुंच रही है। स्कूल छोड़ चुके बच्चों को आंकड़ा इसकी पोल खोलता है। बीते दो साल में बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा ऐसे पांच हजार से अधिक बच्चे चिह्नित किए जा चुके हैं। हर वर्ष विशेष अभियान चलाकर इन्हें विद्यालय भेजने की कवायद की जा रही है लेकिन नतीजा सिफर साबित हो रहा है। शासन द्वारा एक से आठवीं तक के सभी छात्रों को निशुल्क शिक्षा, यूनिफॉर्म, किताबें, जूते मोजे, बैग, मिड डे मील की सुविधा दी जाती है।
ये रही स्थिति बेसिक शिक्षा विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022-23 में अब तक स्कूल छोड़ चुके यानी आउट ऑफ स्कूल दो हजार से अधिक बच्चों को चिह्नित किया जा चुका है। इनमें से अभी तक मात्र 1173 बच्चों को स्कूल में पंजीकृत किया गया है। आठ सौ से अधिक बच्चे अभी पंजीकृत नहीं हुए हैं। कोरोना के बाद 2021-22 में पूरे मेरठ मंडल में दस हजार से अधिक ड्राप आउट बच्चों को चिह्नित किया गया। इनमें से 35 सौ बच्चे सिर्फ मेरठ के शामिल थे। इनमें से सभी बच्चों को स्कूल में प्रवेश नहीं मिल सका।
छात्राएं पीजी में आगे, स्नातक में बराबर की टक्कर
मेरठ मंडल के छह जिलों में उच्च शिक्षा में लड़कियों की स्थित अच्छी है। स्नातकोत्तर कोर्स में प्रवेश लेने में लड़कियों की संख्या लड़कों से आगे है जबकि स्नातक में टक्कर दे रही हैं। कृषि से प्रोफेशनल कोर्स और कानून की पढ़ाई में लड़कियां लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। चौ.चरण सिंह विवि के दिसंबर में प्रस्तावित 34वें दीक्षांत समारोह में गुरुवार तक जारी मेधावियों की सूची में लड़कियां लड़कों से आगे हैं।
औसत साक्षरता दर में पीछे वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर मेरठ में साक्षरता दर 75.66 फीसदी थी। 2011 में भले ही महिला-पुरुषों की साक्षरता दर में बड़ा अंतर दिख रहा हो, लेकिन एक दशक में स्थितियों में बड़ा बदलाव आया है। मेरठ मंडल के छह जिलों में उच्च शिक्षा में लड़कियों के कॉलेजों की संख्या बढ़ी है।
ये होते हैं आउट ऑफ स्कूल बच्चे
ऐसे बच्चे जो 40 या उससे अधिक दिन तक स्कूल नहीं जाते हैं उन्हें आउट ऑफ स्कूल बच्चों की श्रेणी में रखा जाता है। अन्य कारणों से पढ़ाई छोड़ चुके बच्चों को भी इसी कैटेगरी में रखा जाता है। पहली से आठवीं तक के स्कूल छोड़ चुके बच्चों को चिह्नित करने के लिए बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा शारदा अभियान चलाया जाता है। सरकार द्वारा इन बच्चों को 860 रुपये प्रति छात्र दिया जाता है। यूनिफॉर्म, किताबें, जूते-मौजे, बैग, मिड डे मील के साथ निशुल्क शिक्षा मुहैया कराई जाती है।
चलाया जा रहा विशेष अभियान
कोरोना काल के बाद से स्कूल छोड़ चुके बच्चों के लिए विशेष अभियान चलाकर इन्हें प्रवेश दिलाने की कवायद जारी है। विभागीय रिपोर्ट के अनुसार परिषदीय विद्यालयों में वर्ष 2020-21 में 1,29,196 छात्र-छात्राएं नामांकित थे। 2021-22 में 1,42,601 छात्र-छात्राओं के दाखिले हुए। इस वर्ष लक्ष्य के सापेक्ष 31 हजार से अधिक दाखिले अब तक हो चुके हैं। विद्यालयों में नामाकंन अभी भी चालू है।
ये है वजह
शारदा अभियान के तहत होने वाले सर्वे में बच्चों द्वारा पढ़ाई छोड़ने के कई कारण सामने आते हैं। इनमें बच्चों की शिक्षा को लेकर अभिभावकों का उदासीन रवैया सबसे प्रमुख है। दूसरा कारण छात्रों की पढ़ाई में रुचि न होना भी है। गरीबी, दूरी पर स्कूल होना भी शिक्षा छोड़ देने का कारण है। लड़कियों में स्कूल छोड़ने की मुख्य वजहों में उनका घरेलू कार्यों में शामिल रहना है।मेरठ के बेसिक शिक्षा अधिकारी, योगेंद्र कुमार ने कहा कि जिन बस्तियों में बच्चे स्कूल नहीं जा रहे थे उन्हें अभियान चलाकर खोजा गया। प्रयास किया गया कि हर बच्चे को स्कूल भेजा जा सके।
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