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शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

New Education Policy: शिक्षा में लचीलेपन के लाभ



 New Education Policy:  शिक्षा में लचीलेपन के लाभ

मानव क्षमता के पूर्ण दोहन, समाज के एक समान विकास और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा मौलिक आवश्यकता है। आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय, समानता, वैज्ञानिक उन्नति, राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक संरक्षण के मामले में वैश्विक स्तर पर भारत की सतत प्रगति के लिए सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आवश्यक है। व्यक्ति, समाज, देश और दुनिया की भलाई के लिए हमारे देश की समृद्ध युवा प्रतिभाओं को विकसित करने और नौकरी लायक बनाने के लिए प्रभावी कौशल के साथ एकीकृत सार्वभौमिक उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षा के अवसरों का निर्माण करना सबसे अच्छा तरीका है।

युवा सबसे मूल्यवान संपत्ति: आज भारत सबसे अधिक तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। सबसे अधिक युवा जनसंख्‍या हमारे यहां है। आबादी के हिसाब से हम विश्व में दूसरे स्थान पर हैं। पूरे विश्व के कुल युवाओं का पांचवां हिस्सा भारत में है। हमारी कुल 1.3 अरब आबादी में से आधी 25 साल से कम उम्र की है और एक चौथाई 14 साल से भी कम उम्र की है। ऐसे में भारत की युवा जनसंख्या इसकी सबसे मूल्यवान संपत्ति है। 

यह भारत को एक अद्वितीय जनसांख्यिकीय लाभ प्रदान करवाती है, परंतु यदि हम समय रहते अपने युवाओं को अमूल्य मानव संसाधन में परिवर्तित करने में विफल रहे, तो यह सबसे बड़ी चुनौती भी बन सकती है और हम जनसांख्यिकीय लाभ प्राप्त करने का यह बड़ा अवसर खो भी सकते हैं। विभिन्न अपेक्षित प्रयासों से ही हम इन युवाओं को तकनीकी रूप से मजबूत, व्यावसायिक रूप से सक्षम और समाज के लिए प्रासंगिक बना सकते हैं।

बदलते दौर की आवश्‍यकताएं: तकनीकी प्रतिभा वाले छात्र भविष्य में बहु-क्षमता वाले प्रोफेशनल होंगे, जो अपने प्रोफेशन में आधुनिक युग की अपेक्षाओं और विस्तृत मांगों के अनुरूप कार्य करने में सक्षम होंगे। यह भी सत्य है कि तेजी से हो रहे औद्योगीकरण के इस युग में प्रासंगिक बने रहने के लिए टेक-आकांक्षियों को अपने रोजगार के आरंभिक चरण में सबसे अत्याधुनिक क्षेत्र में प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए। क्योंकि इन विधाओं को पूरी तरह से समझे बिना और इनमें कौशल प्राप्त किए बिना बदलते समय की अवश्यकताओं और व्यवसायों के लिए उनकी अपेक्षा के अनुरूप आवश्यक परिणाम दिलवाने में समर्थ नहीं हो सकेंगे।

शिक्षा में एकरूपता: यह सच है कि भारतीय युवा अत्यधिक महत्वाकांक्षी हैं और अपने करियर के निर्णय लेने के लिए अधिक स्वतंत्रता चाहते हैं। वे निरंतर परिवर्तित होती हुई कौशल आवश्यकताओं को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं और बड़ी संख्या में पाठ्यचर्या और सह-पाठयक्रम कार्यकलापों के साथ उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उत्सुक हैं। इसके साथ वे अतिरिक्त प्रशिक्षण लेने और कौशल विकास कार्यक्रमों में नामांकन के लिए भी तैयार हैं।

 लेकिन इसमें एक बड़ी बाधा है शिक्षा में एकरूपता का अभाव। इसी कमी को दूर करने की दिशा में कदम उठाते हुए भारत सरकार ने 18 नवंबर, 2021 को व्यावसायिक यानी कौशल आधारित शिक्षा एवं सामान्य शिक्षा दोनों के लिए एकीकृत क्रेडिट ढांचा तैयार करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित किए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। इसके तहत नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क की संरचना को विकसित करने के लिए शिक्षा मंत्रालय, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय, राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण परिषद, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड संयुक्त रूप से काम कर रहे हैं। 

इस ढांचे यानी फ्रेमवर्क का मुख्य उद्देश्य पूरे देश में शिक्षा प्राप्त करने वाले 30 करोड़ विद्यार्थियों द्वारा अर्जित ज्ञान को एकरूपता प्रदान करना है। यह ज्ञान भले ही कक्षा के कक्षा के अंदर, खेल के मैदान में, नाट्यशाला, उद्योगों, खेत-खलियानों, अनुसंधान के क्षेत्रों, नवाचारों इत्यादि में से कहीं से भी प्राप्त किया गया हो। यह अकादमिक एवं व्यावसायिक शिक्षा में लचीलापन सुनिश्चित करने के‍ लिए इन्हें एकीकृत करेगा तथा स्कूली शिक्षा एवं उच्च शिक्षा को व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रयोगात्मक के साथ मिश्रित करके कौशल और व्यावसायिक शिक्षा को मुख्य धारा की शिक्षा में शामिल करेगा।

क्रेडिट फ्रेमवर्क के फायदे: कोई विद्यार्थी यदि एक वर्ष में किसी भी क्षेत्र में 30 घंटे ज्ञान अर्जित कर अपने शिक्षक द्वारा प्रमाणित करवाता है तो उसे एक क्रेडिट मिल जाएगा। पूरे वर्ष सतत प्रयास करके विद्यार्थी 40 क्रेडिट तक अपने नाम के साथ अकादमिक बैंक आफ क्रेडिट में जमा कर सकता है। यह क्रेडिट खाता विद्यार्थी को विश्वविद्यालयों द्वारा निर्धारित मापदडों के अनुसार सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, डिग्री इत्यादि लेने के लिए पात्रता प्रदान करेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020-में इसी तरह के प्रारूप की परिकल्पना की गई है।

स्कूली शिक्षा का क्रेडिट स्तर लेवल 4.0 तक है, जबकि उच्च शिक्षा में लेवल 4.5 से 8.0 तक है। एक विद्यार्थी अपनी रुचि एवं क्षमता के अनुसार किसी भी उच्च स्तर तक पहुंच सकता है। अगर पूरे विश्व के उदाहरण देखें, तो स्‍काटलैंड में उच्च शिक्षा का लर्निंग आउटकम आधारित क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क सबसे अधिक 12 है। इसके बाद आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का लेवल 10 है। यूरोपीय देशों में क्रेडिट स्तर का उच्चतम लेवल आठ है। इस परिवर्तन के बाद अब एक छात्र अपनी डबल डिग्री और ज्‍वाइंट डिग्री प्रोग्राम की शिक्षा के लिए विदेशी यूनिवर्सिटी में जाता है तो उसके सामने कोई समस्या नहीं होगी। इस नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क के बाद भारतीय संपूर्ण शिक्षा में फ्रेमवर्क एक समान होगा। 

इस प्रारूप में उत्साहवर्धक बात यह है कि यह ढांचा सामान्य एवं व्‍यावसायिक शिक्षा के बीच के बड़े अंतर को समाप्त करता है, क्योंकि यह किसी विधा विशेष में शिक्षण प्राप्त करने के स्थान पर अधिगम के घंटों पर विचार करता है। अतः विद्यार्थी अपनी रुचि के अनुसार कौशल आधारित शिक्षा एवं सामान्य शिक्षा में तालमेल बैठा सकता है। इस फ्रेमवर्क में विद्यार्थियों को उनकी उम्र की सीमा एवं किसी भी डिग्री एवं डिप्लोमा प्राप्त करने की सीमा से भी मुक्त कर दिया गया है। इसके साथ ही इसमें विविध प्रवेश एवं निकास का प्रविधान है अर्थात विद्यार्थी आवश्यकतानुसार विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय में अर्जित ज्ञान के अनुसार प्रमाण पत्र प्राप्त करके उद्योगों में जा सकता है एवं अपनी कुशलता बढ़ा सकता है तथा पुनः शिक्षा प्राप्त करने के लिए जहां उसने शिक्षा छोड़ी थी, वहीं से आरंभ कर सकता है एवं उद्योगों में अर्जित किए गए अपने ज्ञान के लिए क्रेडिट प्राप्त कर सकता है। यह पूर्व में अनौपचारिक रूप से पारिवारिक विरासत, कार्यात्मक अनुभव एवं अन्य पद्धति से प्राप्त ज्ञान को भी मान्यता देता है।

मिलेंगे प्रगति के विकल्प: आजादी के अमृत काल में भारतीय शिक्षा में हो रहे इस आधारभूत परिवर्तन के साथ पहली बार शिक्षा व्यवस्था को पंचकोणीय शिक्षा का स्वर्णिम पथ मिलेगा। यह बंधन-मुक्त शिक्षा का प्रस्फुटन भारतीय शिक्षा व्यवस्था को औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति प्रदान करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है, जिससे भारतीय युवाओं को रोजगारोन्मुखी पाठयक्रम के साथ-साथ समाज उपयोगी तथा राष्ट्र उपयोगी शिक्षा प्रदान करने का अवसर मिलेगा। 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लक्ष्यों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए भारत सरकार ने नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क (एनसीआरएफ) विकसित किया है। इसमें शैक्षिक और व्‍यावसायिक क्षेत्रों का एकीकरण करते हुए दोनों के प्रति लचीला रुख अपनाना सुनिश्चित किया गया है। एनसीआरएफ इस दिशा में बड़ा परिवर्तनकारी साबित होगा। यह युवाओं को भविष्य में प्रगति के लिए ढेरों विकल्प प्रदान करेगा, जिसमें व्यावासिक शिक्षा और अनुभवजन्य शिक्षा के बीच एक संबंध स्थापित किया जाना शामिल है। इससे कौशल विकास और व्यावसायिक शिक्षा मुख्य धारा में आएंगे। जो छात्र मुख्य धारा की शिक्षा से बाहर हो चुके हैं, एनसीआरएफ उन्हें फिर से शिक्षा हासिल करने में सक्षम बनाएगी।

प्रतिभा को लगेंगे पंख: उम्मीद की जाती है कि अपने विभिन्न प्रविधानों के द्वारा यह ढांचा स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा और कौशल शिक्षा में अर्जित ज्ञान के लिए क्रेडिटस को बिना किसी बाधा के एकीकृत करके उन छात्रों के लिए शिक्षा को विशिष्ट बना देगा जिनमें सीखने की अद्भुत प्रतिभा है और उनके ज्ञान को सार्थकता देगा जिन्होंने पारं‍परिक पारिवारिक विरासत से, काम के अनुभव से या अन्य पद्धति से सीखा हुआ है।

बहुप्रवेश एवं बहुनिकासी के विकल्पों के प्रविधानों के साथ पाठ्यक्रम की अवधि का लचीलापन, शैक्षणिक, व्यावसायिक और अनुभवजनित शिक्षा सहित सीखने के घंटों का क्रेडिटकरण, जीवनपर्यंत सीखने का प्रविधान एवं जीवन के प्रयोगों पर केंद्रित शिक्षा प्रणाली द्वारा भारत सफल परिणाम प्राप्त करके अत्याधुनिक समाधान प्रदान करते हुए आत्मनिर्भरता के साथ दुनिया पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए सुसज्जित होगा।-प्रो. एमपी पूनिया, उपाध्यक्ष, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआइसीटीई)



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