12 साल में बंद हुए 12,443 सरकारी स्कूल, सुधार के वादों के बीच बदहाल होती शिक्षा व्यवस्था
भीलवाड़ा. प्रदेश में सरकारी शिक्षा व्यवस्था सुधारने के वादे तो हर सरकार ने किए, लेकिन नतीजा उलटा निकला। पिछले एक दशक से अधिक समय में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों ने शिक्षा सुधार के नाम पर 12 हजार 443 सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया। फिर भी न तो शिक्षकों की कमी पूरी हुई और न ही स्कूल भवनों की दशा सुधरी। सरकार के अपने आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश के करीब 5500 स्कूल भवन जर्जर हैं और 1.14 लाख शिक्षकों के पद खाली हैं।स्कूल घटे, शिक्षकों की कमी जस की तस: राज्य में स्कूलों की संख्या तो घटी, लेकिन शिक्षक नियुक्ति में कोई खास सुधार नहीं हुआ। अब भी 1.14 लाख से अधिक पद रिक्त हैं। इनमें प्रधानाचार्य के 5,500, उप प्रधानाचार्य के 11,800, व्याख्याताओं के 17,000, ग्रेड द्वितीय के 43,000 और ग्रेड तृतीय के 37,000 पद शामिल हैं। शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार रिक्त पदों और गैर-शैक्षणिक कार्यों में शिक्षकों की व्यस्तता के कारण शिक्षण गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ा है।
फिर भी 5500 स्कूल भवन जर्जर
प्रदेश में करीब 5500 स्कूल भवन जर्जर अवस्था में हैं। उन्हें जमींदोज करने के आदेश तो हुए हैं, लेकिन अभी तक नहीं किए गए हैं। ऐसे में कई स्थानों पर विद्यार्थी अस्थायी टीन शेड या खुले आकाश तले पढ़ाई करने को मजबूर हैं। शिक्षक संघों का कहना है कि यदि समय पर मरम्मत और रखरखाव नहीं हुआ, तो सुरक्षा जोखिम बढ़ सकती है। भीलवाड़ा जिले में भी करीब 179 स्कूल भवन जर्जर हैं।
20 हजार से अधिक प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूल बंद
शिक्षा विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार सत्र 2013-14 में प्रारंभिक शिक्षा विभाग में 73,069 सरकारी स्कूल संचालित थे। लेकिन कम नामांकन और स्कूल एकीकरण नीति के तहत इन्हें घटाकर अब संस्कृत शिक्षा सहित 52,635 स्कूल ही रह गए हैं। यानि 20,434 प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूल बंद कर दिए गए। वहीं माध्यमिक शिक्षा सेटअप के 2013-14 में 12,616 स्कूल थे, जो अब बढ़कर 20,607 हो गए हैं। इस तरह 12 वर्षों में जहां प्रारंभिक शिक्षा विभाग की स्कूल घटे, वहीं माध्यमिक स्तर के 7991 स्कूलें बढ़े।सरकारी स्कूलों में सुविधाओं की कमी और शिक्षकों के अभाव ने विद्यार्थियों को निजी स्कूलों की ओर मोड़ दिया है। साल 2021-22 में प्रदेश के सरकारी स्कूलों में नामांकन 97.15 लाख था, जो अब घटकर संस्कृत स्कूलों सहित 77.09 लाख रह गया है। हालांकि 2013 की तुलना में सरकारी स्कूलों का नामांकन 65.40 लाख से बढ़कर 77 लाख हुआ है, लेकिन इसी अवधि में निजी स्कूलों का नामांकन लगभग 33 लाख बढ़ा, यानि सरकारी स्कूलों की तुलना में ढाई गुना अधिक वृद्धि दर्ज की गई।
नीतियों में निरंतरता की कमी सबसे बड़ी समस्या
हर सरकार ने गुणवत्ता सुधार के नाम पर नई योजनाएं तो शुरू कीं, लेकिन नीतिगत निरंतरता नहीं रही।स्कूलों का एकीकरण, तबादले, और स्टाफ की कमी ने सरकारी शिक्षा को हाशिए पर ला दिया है। यदि सरकारें दीर्घकालिक योजना बनाकर स्थिर नीति लागू करें, तभी सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधर सकती है।-नीरज शर्मा, प्रदेश अध्यक्ष, राजस्थान शिक्षक संघ (राष्ट्रीय)
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