सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालय दाखिले में एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण पर हाईकोर्ट का आदेश रखा बरकरार
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को मणिपुर उच्च न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि मणिपुर विश्वविद्यालय को दाखिले में एससी छात्रों के लिए दो प्रतिशत, एसटी के लिए 31 प्रतिशत और ओबीसी के लिए 17 प्रतिशत आरक्षण मानदंडों का पालन करना होगा। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि विश्वविद्यालय विभिन्न पाठ्यक्रमों में दाखिला के संबंध में सीटों के आरक्षण की सीमा की गणना करने में सही था।
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय की इस राय का समर्थन किया कि आरक्षण कानून में संशोधन के बाद विश्वविद्यालय को अनुसूचित जाति (एससी) के छात्रों के लिए दो प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति (एसटी) छात्रों के लिए 31 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के छात्रों के लिए 17 प्रतिशत के आरक्षण मानदंडों का पालन करना था।पीठ ने कहा, ''विश्वविद्यालय ने अपने हलफनामे में स्पष्ट किया है कि आरक्षण कानून के लागू होने से पहले एसटी और एससी के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण का प्रचलित प्रतिशत क्रमशः 31 प्रतिशत और दो प्रतिशत था। याचिकाकर्ता ने इसके विपरीत कुछ भी तथ्य प्रस्तुत नहीं किया गया है।''
शीर्ष अदालत मणिपुर उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती देने वाले क्षेत्रीमयूम महेशकुमार सिंह और अन्य द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया कि एससी और एसटी उम्मीदवारों के लिए आरक्षण का प्रतिशत, जैसा कि आरक्षण कानून के शुरू होने से पहले विश्वविद्यालय में लागू किया गया था, उसी अनुरूप आरक्षित श्रेणियों में आरक्षण के प्रतिशत के निर्धारण के लिए अपनाया जाएगा।
उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए विश्वविद्यालय में एससी, एसटी और ओबीसी के छात्रों के लिए आरक्षण का प्रतिशत क्रमशः दो प्रतिशत, 31 प्रतिशत और 17 प्रतिशत होगा। हालांकि, उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय द्वारा आरक्षित अधिसूचित सीटों की वास्तविक गणना के तथ्यों पर गौर करने से इनकार कर दिया और सीटों के आरक्षण के प्रतिशत के निर्धारण के लिए अपनाए जाने वाले सिद्धांतों तक सीमित रखा, जिसके आधार पर सीटों की गणना की जानी थी।
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