नेहरू के कोट में लाल गुलाब क्यों नजर आता था? कांग्रेस के खुलासे से खत्म हुई 86 साल पुरानी बहस
पंडित जवाहरलाल नेहरू भारतीय राजनीति की सबसे प्रभावशाली हस्तियों में से एक थे और उनकी छवि से जुड़े कई प्रतीक आज भी चर्चा में रहते हैं। उनमें से एक है उनके कोट के लैपल पर लगा लाल गुलाब। यह गुलाब अक्सर उनकी लगभग हर तस्वीर में दिखाई देता है, और लंबे समय तक इसके पीछे की वजह को लेकर कई तरह की कहानियाँ और धारणाएँ प्रचलित रहीं। कुछ लोगों ने कहा कि नेहरू को गुलाब पसंद था, कुछ ने इसे उनकी सौम्यता और सरलता का प्रतीक बताया तो कुछ ने इसे समाजवादी विचारधारा से जोड़कर देखा। लेकिन अब कांग्रेस पार्टी ने अपने आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट के जरिए स्पष्ट कर दिया है कि नेहरू अपने कोट पर गुलाब किसी राजनीतिक या औपचारिक कारण से नहीं बल्कि एक बेहद भावनात्मक वजह से लगाते थे। कांग्रेस के पोस्ट में बताया गया कि पंडित नेहरू अपनी पत्नी कमला नेहरू की याद में हर दिन अपने कोट पर एक ताज़ा लाल गुलाब लगाते थे। कमला नेहरू का 1938 में लंबी बीमारी के कारण निधन हो गया था और उनके जाने के बाद भी नेहरू ने प्रतिदिन गुलाब पहनकर अपनी पत्नी की स्मृति को अपने साथ रखने की एक भावनात्मक परंपरा बना ली थी। इस प्रकार उनके कोट पर लगा गुलाब निजी प्रेम, स्मृति और संवेदनशीलता का प्रतीक था, जो धीरे-धीरे जनता और राष्ट्र के लिए भी एक प्रतीक बन गया।
समय के साथ यह गुलाब केवल एक व्यक्तिगत स्मृति का चिह्न नहीं रहा, बल्कि उनकी सार्वजनिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। नेहरू का पहनावा बहुत सादा और संयमित रहता था सफेद खादी, बंद गले वाला अचकन, और किनारे पर एक ताज़ा गुलाब। यह दृश्य उनकी छवि को एक ऐसे नेता की तरह प्रस्तुत करता था जो आधुनिकता, संवेदनशीलता और सरलता इन तीनों को समान रूप से महत्व देता है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि गुलाब का लाल रंग समाजवादी विचारधारा के प्रतीक के रूप में भी लिया जाता है, जिससे नेहरू की नीतियों और विचारधाराओं का मेल दिखता है, लेकिन कांग्रेस द्वारा दिए गए आधिकारिक स्पष्टीकरण से यह स्पष्ट हो गया कि गुलाब का मूल कारण राजनीतिक नहीं बल्कि पूरी तरह व्यक्तिगत और भावनात्मक था। यह भी ध्यान देने योग्य है कि नेहरू को बच्चों से विशेष लगाव था और बच्चे उन्हें प्यार से ‘चाचा नेहरू’ कहकर बुलाते थे। बच्चों के प्रति उनके लगाव ने उनकी छवि को और मधुर, कोमल और मानवीय बनाया। यही वजह है कि उनके जन्मदिन 14 नवंबर को ही भारत में बाल दिवस मनाया जाता है। हालांकि यह भी कम लोग जानते हैं कि भारत में 1964 से पहले बाल दिवस 20 नवंबर को मनाया जाता था क्योंकि संयुक्त राष्ट्र ने 1954 में इसी दिन "यूनिवर्सल चिल्ड्रेन्स डे" की घोषणा की थी, लेकिन नेहरू के निधन के बाद उनके बच्चों के प्रति प्रेम और शिक्षा के प्रति समर्पण को सम्मान देने के लिए उनके जन्मदिन को बाल दिवस घोषित किया गया। इस प्रकार 14 नवंबर 1964 को पहली बार भारत में बाल दिवस मनाया गया और तब से यह परंपरा जारी है।
नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में हुआ था। उनके पिता मोतीलाल नेहरू जाने-माने वकील और स्वतंत्रता सेनानी थे, जबकि मां स्वरूपरानी नेहरू सामाजिक रूप से अत्यंत सक्रिय थीं। नेहरू बचपन से ही अध्ययनशील थे और आधुनिक विज्ञान, इतिहास और राजनीति में गहरी रुचि रखते थे। उन्होंने “ग्लिम्प्सेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री”, “डिस्कवरी ऑफ इंडिया” जैसी कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं जो आज भी इतिहास और राजनीति के विद्यार्थियों के लिए मार्गदर्शक मानी जाती हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नेहरू की प्रतिष्ठा काफी ऊंची थी। 1950 से 1955 के बीच उन्हें कुल 11 बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया, हालांकि वे यह पुरस्कार प्राप्त नहीं कर पाए। फिर भी विश्व राजनीति में उनके योगदान को आज भी अत्यंत सम्मान के साथ देखा जाता है।
नेहरू का लाल गुलाब उनकी व्यक्तित्व यात्रा की तरह ही एक प्रतीक था सरल लेकिन गहरा, व्यक्तिगत लेकिन सार्वजनिक, सौम्य लेकिन प्रभावशाली। यह छोटा-सा फूल एक व्यक्ति के जीवन, उसकी स्मृतियों और उसके प्रेम की कहानी कहता है। कई दशकों बाद भी जब नेहरू की तस्वीरें सामने आती हैं, तो सबसे पहले जो चीज नजर जाती है वह है उनका शांत चेहरा और उनके कोट पर सजा एक ताज़ा लाल गुलाब एक भावना, एक स्मृति और एक प्रतीक जिसका अर्थ अब पहले से कहीं अधिक स्पष्ट और भावनात्मक हो चुका है।
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