UPPSC: एपीएस भर्ती 2010 में धांधली में आईएएस प्रभुनाथ पर एफआईआर
UPPSC APS Recruitment 2010 Case: अपर निजी सचिव (एपीएस) भर्ती 2010 में धांधली पर उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व परीक्षा नियंत्रक और वर्तमान में पीडब्ल्यूडी के विशेष सचिव आईएएस प्रभुनाथ के खिलाफ सीबीआई ने दिल्ली में केस दर्ज किया है। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, साजिश के तहत ठगी और फर्जीवाड़ा की धाराओं में 4 अगस्त को मुकदमा दर्ज किया गया है। सीबीआई के सबइंस्पेक्टर रविश कुमार झा ने प्रभुनाथ के अलावा इस गोरखधंधे में शामिल आयोग के दो अज्ञात अधिकारियों और अन्य अज्ञात बाहरी को भी आरोपी बनाया है।
केंद्रीय जांच एजेंसी ने डिप्टी एसपी पीके श्रीवास्तव को इस मामले की जांच सौंपी है। इस प्रकरण की शुरुआती जांच में प्रभुनाथ व आयोग के अन्य अधिकारियों को विशेषाधिकार के दुरुपयोग का दोषी बताए गए। 250 पदों पर की गई एपीएस भर्ती 2010 में हिन्दी आशुलिपिक परीक्षा में न्याय व कार्मिक विभाग से बिना परामर्श लिए गलती की छूट 5 प्रतिशत के बजाय 8 फीसदी करने का निर्णय 15 जून 2015 को आयोग की बैठक में ले लिया गया। 135 अंकों की हिन्दी आशुलिपिक परीक्षा के लिए अभ्यर्थी को कम से कम 125 अंक पाना अनिवार्य था।
इस परीक्षा में 913 अभ्यर्थियों ने 125 अंक प्राप्त किए थे। 331 अभ्यर्थी ऐसे थे जिन्होंने 119 से 125 के बीच अंक पाया था। आयोग ने सभी 1244 अभ्यर्थियों को तृतीय चरण के कम्प्यूटर नॉलेज टेस्ट के लिए क्वालीफाई करा दिया। आयोग ने 8 प्रतिशत की छूट उसी दशा में देने का निर्णय लिया था जब 5 फीसदी गलती की छूट के बाद पर्याप्त संख्या में अभ्यर्थी नहीं मिलते। सीबीआई की शुरुआती जांच में यह बात सामने आई कि सिर्फ 913 अभ्यर्थियों को तृतीय चरण के कम्प्यूटर नॉलेज टेस्ट के लिए क्वालीफाई करना था।
लेकिन प्रभुनाथ और आयोग के अन्य अधिकारियों ने अपने विशेषाधिकार का बेजा इस्तेमाल करते हुए 15 जून 2015 के निर्णय के आधार पर 331 अयोग्य अभ्यर्थियों को भी पास कर दिया। यही नहीं आयोग के गोपन विभाग-3 ने भी कोई आपत्ति किए बगैर 1244 अभ्यर्थियों की सूची 19 जून 2015 को प्रभुनाथ के समक्ष प्रस्तुत कर दी। आयोग ने 29 जुलाई 2015 को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर जिन अभ्यर्थियों ने अपना कम्प्यूटर प्रमाणपत्र जमा नहीं किया था उन्हें 17 अगस्त तक प्रमाणपत्र जमा करने का मौका दिया था।
हालांकि प्रभुनाथ और आयोग के अन्य दोषी अधिकारियों ने समयसीमा बीतने के बावजूद कुछ अभ्यर्थियों का प्रत्यावेदन और प्रमाणपत्र स्वीकार किया। यहां तक की समयसीमा बीतने के बाद कुछ अभ्यर्थियों को अपना कम्प्यूटर प्रमाणपत्र बदलने की भी छूट दी जो कि आयोग की प्रेस विज्ञप्ति के खिलाफ थी। आयोग के विशेषज्ञों ने हिन्दी आशुलिपिक और हिन्दी टाइप टेस्ट की आंसर शीट का मूल्यांकन और सन्निरीक्षा (स्क्रूटनी) भी सही तरीके से नहीं की।
आंसर शीट के मूल्यांकन में भी लापरवाही बरती गई और अंकों को घटा व बढ़ाकर अपने चहेतों को अनुचित लाभ देते हुए मेरिट लिस्ट में शामिल कर लिया गया। इसके चलते कुछ योग्य अभ्यर्थी मेरिट लिस्ट से बाहर हो गए और अयोग्य का चयन हो गया। इसका समुचित निरीक्षण आयोग के अधिकारी नहीं कर सके। जांच में पता चला कि सेटिंग से मेरिट लिस्ट में शामिल किए गए कुछ सफल अभ्यर्थियों के कम्प्यूटर प्रमाणपत्र भी फर्जी थे। तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक प्रभुनाथ और आयोग के अन्य अधिकारियों का यह कृत्य गंभीर भ्रष्टाचार के दायरे में आता है।
इस भर्ती की जांच की शासन ने दी थी विशेष अनुमति
एपीएस भर्ती 2010 में धांधली की जांच शासन और उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के कुछ अधिकारी नहीं चाहते थे। अभ्यर्थियों की शिकायत पर आयोग ने इस भर्ती की जांच की अनुमति मांगी तो आयोग के अफसरों ने दस्तावेज देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि शासन ने अप्रैल 2012 से मार्च 2017 तक की भर्ती की जांच ही सीबीआई को सौंपी हैं। जबकि यह भर्ती इस समयसीमा में नहीं आती। इस पर सीबीआई ने शासन से अनुमति मांगी। गोरखपुर से एमएलसी देवेन्द्र प्रताप सिंह ने भी शासन पर काफी दबाव बनाया जिसके बाद सरकार ने इस भर्ती की जांच के लिए 4 सितंबर 2018 को विशेष अनुमति प्रदान की।
चार साल में सीबीआई ने दर्ज की दूसरी एफआईआर
लोक सेवा आयोग में भ्रष्टाचार की जांच कर रही सीबीआई ने चार साल में दूसरी एफआईआर दर्ज की है। 21 नवम्बर 2017 को केन्द्र सरकार के कार्मिक व पेंशन मंत्रालय ने आयोग की सीबीआई जांच की अधिसूचना जारी की थी। 5 मई 2018 को पीसीएस 2015 परीक्षा में अनियमितता को लेकर सीबीआई के दिल्ली मुख्यालय में एफआईआर दर्ज की गई थी। इसमें पीसीएस 2015 परीक्षा की कई अनियमितताओं का उल्लेख किया गया था।
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