अल्पसंख्यक संस्थानों के भर्ती मामलों में डीआईओएस की शक्तियां सीमित
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि वित्तीय सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्थान में लिपिक भर्ती के लिए जिला विद्यालय निरीक्षक के पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों की नियुक्ति प्रक्रिया में राज्य सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने अलीगढ़ के अल्पसंख्यक संस्थान श्री उदय सिंह जैन कन्या इंटर कॉलेज में कार्यरत लिपिक मनोज कुमार जैन की याचिका पर दिया है। याचिका के अनुसार विद्यालय प्रबंध समिति ने याची की लिपिक संवर्ग में नियुक्ति जनवरी 2018 में की थी, जिस पर जिला विद्यालय निरीक्षक ने वित्तीय स्वीकृति प्रदान करने से मना कर दिया था। याची ने डीआईओएस के आदेश के विरुद्ध याचिका की, जिसमें न्यायालय ने डीआईओएस के आदेश को निरस्त करते हुए पुनः आदेश करने का निर्देश दिया, लेकिन डीआईओएस ने फिर वित्तीय स्वीकृति प्रदान करने में असहमति जताई।
माध्यमिक शिक्षा विभाग ने इस संदर्भ में कि विद्यालय प्रबंध समिति ने लिपिक पद के विज्ञापन की न तो विभाग से अनुमति ली थी और न ही विज्ञापन में न्यूनतम आवश्यक योग्यता, आयुसीमा व वेतनमान का वर्णन किया था। विद्यालय प्रबंधन ने चयन समिति में जिलाधिकारी द्वारा नामित सदस्य एवं आरक्षित वर्ग के सदस्य की जगह विद्यालय के प्रधानाचार्य एवं सहायक अध्यापक को सदस्य के रूप में शामिल किया था, जो चयन समिति की निष्पक्षता एवं पारदर्शिता पर संदेह उत्पन्न करते हैं। याची की ओर से कहा गया कि वित्त पोषित अल्पसंख्यक माध्यमिक विद्यालय में लिपिक संवर्ग में भर्ती के लिए डीआईओएस की अनुमति लेना आवश्यक नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक संस्थानों की नियुक्ति के मामले में चयन समिति में जिलाधिकारी द्वारा नामित एवं आरक्षित वर्ग के सदस्य को शामिल करना भी आवश्यक नहीं है। राज्य सरकार अल्पसंख्यक संस्थानों पर प्रशासनिक अधिकार के नियम थोपकर उनकी स्वायत्तता भंग नहीं कर सकती। अल्पसंख्यक संस्थानों को संविधान के अनुच्छेद 29 एवं 30 में विशेष अधिकार प्रदान किए गए हैं।
कोर्ट ने कहा कि सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक माध्यमिक विद्यालय में लिपिक की नियुक्ति में डीआईओएस केवल चयनित अभ्यर्थी की नियुक्ति को बिना अर्हता पाए जाने पर ही अवैध ठहरा सकता है। डीआईओएस ने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था को संविधान द्वारा प्रदत्त विशेष अधिकारों की उपेक्षा कर दो बार आदेश दिया है। साथ ही वित्तीय सहमति प्रदान करने संबंधी आदेश को निरस्त करते हुए याची को वर्ष 2018 से वित्तीय सहमति प्रदान करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने याची को अगले तीन महीनों में वर्ष 2018 से अद्यतन अवधि तक का वेतन भुगतान करने का निर्देश दिया है। एरियर भुगतान न होने की स्थिति में याची को 12 फ़ीसदी ब्याज के साथ भुगतान करने का निर्देश दिया है। साथ ही सरकार को भुगतान में देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारी से ब्याज की वसूली करने की छूट दी है।
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