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शनिवार, 27 जुलाई 2024

नीति आयोग की बैठक में ममता का भयंकर विरोध: मोदी और इंडिया गठबंधन को एक साथ दिखाया आईना

इंडिया को ढेंगा, केंद्र पर गुस्सा! नीति आयोग की बैठक से ममता ने साधा एक तीर से दो निशाना

 नीति आयोग की बैठक में ममता का भयंकर विरोध: मोदी और इंडिया गठबंधन को एक साथ दिखाया आईना


हाल ही में दिल्ली में पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में नीति आयोग की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई, जो राष्ट्रीय विकास के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने के लिए बुलाई गई थी। इस बैठक में विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रित किया गया था, लेकिन विपक्षी गठबंधन के अधिकांश मुख्यमंत्रियों ने इसमें भाग नहीं लिया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बैठक में शामिल होकर न केवल राजनीतिक हलकों में हलचल मचाई, बल्कि अपने विशिष्ट तरीके से प्रधानमंत्री मोदी और इंडिया गठबंधन दोनों पर निशाना साधा।

ममता बनर्जी का इस बैठक में शामिल होना और फिर विरोध प्रकट करना, विशेषकर इंडिया गठबंधन के विरोध में, राजनीतिक अटकलों को जन्म दे रहा है। जब ममता बनर्जी बैठक में शामिल हुईं, तो उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें बोलने का अवसर नहीं दिया गया और इस बहाने उन्होंने बैठक से बहिष्कार कर दिया। इस घटनाक्रम ने उन्हें पूरे दिन की सुर्खियों में बनाए रखा और दिल्ली की राजनीति में उनका नाम छा गया।

इस बैठक के दौरान ममता बनर्जी ने पीएम मोदी की आलोचना की और कहा कि बजट में उनके राज्य के साथ भेदभाव किया गया है। हालांकि, ममता ने इस बात का भी आरोप लगाया कि उनका माइक बंद कर दिया गया और उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने बैठक से बाहर आकर अपनी नाराजगी जाहिर की और विपक्षी गठबंधन के समन्वय के खिलाफ अपने स्टैंड को स्पष्ट किया। उनका यह कदम एक समय में कई संदेश दे रहा था  मोदी सरकार के खिलाफ विरोध और इंडिया गठबंधन की एकता को चुनौती देना।

ममता बनर्जी के इस कदम पर कांग्रेस, अन्य विपक्षी दलों और इंडिया गठबंधन के भीतर भी चर्चा छिड़ गई है। विपक्षी गठबंधन के अन्य मुख्यमंत्रियों ने बैठक का बहिष्कार किया, जिसमें झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन शामिल थे। ममता का इस बैठक में शामिल होना और फिर विरोध का यह रवैया यह दर्शाता है कि उन्होंने एक तीर से दो निशाने साधे हैं - एक तरफ उन्होंने मोदी सरकार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की और दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन के भीतर अपनी स्थिति को स्पष्ट किया।

बंगाल में लोकसभा चुनाव के दौरान ममता बनर्जी की पार्टी ने यह साबित कर दिया था कि उनकी पकड़ वहां कितनी मजबूत है। पार्टी ने 42 में से 29 सीटें जीतकर कांग्रेस और माकपा को चुनौती दी थी, लेकिन चुनाव के बाद ममता ने इंडिया गठबंधन के साथ आकर बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोला। उनकी यह रणनीति यह दर्शाती है कि ममता ने अपनी स्थिति को बनाए रखने और एक मजबूत विरोधी स्वरूप में उभरने के लिए राजनीति की चालें बखूबी समझी हैं।

नीति आयोग की बैठक में ममता के व्यवहार पर राजनीति के विभिन्न विशेषज्ञों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने ममता के प्रति समर्थन व्यक्त किया और मोदी सरकार की आलोचना की, जबकि कांग्रेस के कुछ नेताओं ने ममता के विरोध का विरोध किया। कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने ममता पर सीधा आरोप लगाया कि उन्होंने झूठ बोला और उनका यह कदम पहले से तय स्क्रिप्ट के अनुसार था।

इस विवाद के बीच, ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने भी कांग्रेस के नेतृत्व की ओर सवाल उठाए हैं। लोकसभा में स्पीकर चुनाव के दौरान भी तृणमूल ने कांग्रेस के उम्मीदवार के चयन पर आपत्ति जताई थी और यह संकेत दिया था कि उनकी पार्टी की राय और सहमति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इससे साफ होता है कि ममता बनर्जी केवल मोदी सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि इंडिया गठबंधन की अंदरूनी राजनीति में भी अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश कर रही हैं।

हाल ही में, ममता ने कोलकाता में एक बड़ी रैली आयोजित की थी, जिसमें समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने शिरकत की थी। इस रैली ने यह दर्शाया कि ममता और अखिलेश यादव के बीच एक गहरा राजनीतिक संबंध है और उनकी ताकतवर स्थिति को नजरअंदाज करना कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लिए मुश्किल हो सकता है। ममता की यह रैली और उनके द्वारा उठाए गए सवाल, कांग्रेस के प्रभुत्व और इंडिया गठबंधन की एकता के सवालों को उजागर करते हैं।

ममता बनर्जी के इस रणनीतिक कदम ने दिल्ली की राजनीति में हंगामा मचा दिया है। उन्होंने नीति आयोग की बैठक में शामिल होकर और फिर विरोध प्रकट कर, दोनों ही दलों - मोदी सरकार और इंडिया गठबंधन - को चुनौती दी है। यह घटनाक्रम यह भी दर्शाता है कि भारतीय राजनीति में एक शक्तिशाली नेता के रूप में ममता बनर्जी की स्थिति मजबूत हो गई है और उन्होंने यह साबित कर दिया है कि उनकी राजनीतिक चालें कितनी प्रभावशाली हो सकती हैं।

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