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सोमवार, 28 नवंबर 2022

कभी स्कूल नहीं गए लेकिन ISRO में बने रॉकेट वैज्ञानिक, अब 59 की उम्र में NEET देकर MBBS करने का इरादा



 कभी स्कूल नहीं गए लेकिन ISRO में बने रॉकेट वैज्ञानिक, अब 59 की उम्र में NEET देकर MBBS करने का इरादा

आपने ऐसे बहुत से लोगों के बारे में सुना होगा जिन्होंने स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी, लेकिन जिंदगी में खूब सफल हुए। ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जिन्होंने नामी स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई की और समाज में अपना एक मुकाम बनाया। आज हम एक ऐसे शख्स के बारे में बात करने वाले हैं, जो कभी स्कूल नहीं गए, लेकिन उन्होंने इसरो में रॉकेट वैज्ञानिक के तौर पर काम किया और अब 59 साल की उम्र में डॉक्टर बनने के ख्वाहिशमंद हैं तथा मेडिकल में दाखिले की प्रवेश परीक्षा पास कर चुके हैं।     

वर्ष 1963 में पैदा हुए राजन बाबू का जीवन संघर्ष और मजबूत इरादों की मिली-जुली दास्तान है। उनके पिता बीमार रहते थे, लिहाजा बचपन से ही उन्हें घर चलाने के लिए छोटे-मोटे काम करने पड़े। वह पावरलूम में काम करके माता-पिता और बड़ी बहनों की जिम्मेदारी संभालते थे। पढ़ने का शौक था इसलिए मां ने एबीसीडी और दो दूनी चार सिखाया तो यही उनकी प्रारंभिक शिक्षा बन गई। थोड़े बड़े हुए तो वह खुद से अन्य विषयों की पढ़ाई करने लगे और जीवन अपनी रफ्तार से चलता रहा।  

साल 1981 में जीवन ने करवट ली और बेंगलुरु निवासी राजन बाबू ने अपने एक दोस्त की सलाह पर 10वीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी। उनका हौसला उस समय कई गुना बढ़ गया, जब उन्होंने यह परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली। उसी के आधार पर उन्हें इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के डिप्लोमा कोर्स में दाखिला मिल गया। हालांकि इस दौरान वह एक कंपनी में काम करते हुए घर की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाते रहे।

राजन बाबू ने एक अखबार के साथ मुलाकात में बताया कि कंपनी में काम करने का उन्हें दोहरा फायदा हुआ। आर्थिक लाभ के साथ ही काम करने का तजुर्बा भी हासिल हुआ, जिसकी वजह से उन्होंने 1992 में एसोसिएट मेंबर ऑफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियर्स की परीक्षा पास कर ली। उस समय इस परीक्षा को बीई के बराबर माना जाता था और इस तरह वह इंजीनियरिंग स्नातक हो गए।  

    

इस पढ़ाई के सहारे उन्होंने कुछ साल नौकरी की, लेकिन उनका दिल कहता था कि वह इसके लिए नहीं बने हैं। उन्हें तो कुछ और करना है। जल्दी ही उनके मन की मुराद पूरी होने का वक्त आ गया, जब उन्हें पता चला कि इसरो में रॉकेट वैज्ञानिक के पद के लिए जगह निकली है। उन्होंने तत्काल आवेदन कर दिया। उस नौकरी पर तो जैसे राजन बाबू का नाम लिखा था, तभी तो एक लाख से अधिक आवेदकों में से उन्हें चुन लिया गया और इस तरह वह 1995 में इसरो में रॉकेट वैज्ञानिक बन गए।     

राजन बाबू बताते हैं कि इसरो में काम के दौरान ही उन्होंने बिट्स पिलानी से कंप्यूटर साइंस में एमएससी किया और वर्ष 2000 में अमेरिका चले गए। भारतीयों में विदेश में रहने-बसने का मोह इतना ज्यादा है कि आम तौर पर जो एक बार विदेश जाता है, वह लौटकर नहीं आना चाहता, लेकिन राजन बाबू सात वर्ष तक कई कंपनियों में काम करने के बाद 2007 में स्वदेश वापस लौट आए। 

राजन बाबू की जिंदगी ने 2019 में एक बार फिर करवट बदली जब अपने बच्चों को एमबीबीएस की पढ़ाई करते देखकर उन्होंने भी डॉक्टरी की पढ़ाई करने का इरादा किया। मजे की बात यह है कि 59 साल की उम्र में उन्होंने नीट की परीक्षा पास भी कर ली, लेकिन उन्हें इतने नंबर नहीं मिल सके कि वह सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले सकें। लिहाजा उन्होंने इस परीक्षा में दोबारा हाथ आजमाने का फैसला किया है। बहुत मुमकिन है कि अगले बरस उनका सरकारी मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरी पढ़ने का सपना भी साकार हो जाए।

बाबू कहते हैं कि वह मानवता की सेवा के लिए डॉक्टरी पढ़ना चाहते हैं। हाल की महामारी ने उनकी मां को उनसे छीन लिया और उन्हें डॉक्टरों की अहमियत का एहसास दिलाया। राजन बाबू डॉक्टर बनकर रिसर्च पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं ताकि समाज से जो मिला है उसका कुछ अंश वापस लौटा सकें।


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